रोज़मर्रा की बातचीत में लोग अक्सर शिकायत करते हैं। जब भी आप किसी से बातचीत करेंगे, तो पाएंगे कि सब शिकायत की बोली बोल रहे हैं। सब लोग एक-दूसरे से नेगेटिव भाषा में बात करते हैं। ज्यादातर शिकायत किसी व्यक्ति विशेष, समूह या देश से होती है। हर कोई इसी मानसिकता का शिकार है, यही वह रवैया है, जिसने लोगों को ईश्वर के लिए आभार की भावना से दूर कर दिया है।
दरअसल, वे सभी घटनाएं जिनका ज़िक्र लोग अपनी शिकायतों में करते हैं, इंसानी पैदावार है, लेकिन इन घटनाओं का पूरी इंसानी ज़िंदगी में एक प्रतिशत से भी कम रोल है। अन्य घटनाएं, जिनका जिम्मेदार ईश्वर को कहा जा सकता है, 99 प्रतिशत से भी ज्यादा है।
इस अंतर को ध्यान में रखते हुए अगर आप गहराई से सोचेंगे, तो आप पाएंगे कि जो घटनाएं एक प्रतिशत से भी कम हैं, वे बातचीत का मुख्य विषय हैं, लेकिन लोग इस छोटे से हिस्से पर अपनी राय बनाते हैं। यह अजीब बात है कि एक इंसान, जो ईश्वर के अनगिनत तोहफे और आशीर्वाद लगातार प्राप्त कर रहा है और जो उसकी ज़िंदगी में होने वाली 99 प्रतिशत से अधिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार है, चर्चा का विषय नहीं है। जिन चीज़ों के बारे में लोग अगर सोचेंगे नहीं, तो वे कैसे उनके लिए आभारी होंगे?
यही लोगों की नेगेटिव सोच की असल वजह है। लोग सिर्फ इंसानी घटनाओं पर ध्यान देते हैं और इसलिए वे नेगेटिव बात करते हैं। इसके विपरीत अगर वे ईश्वरीय घटनाओं से परिचित होते, तो वे पाते कि इंसानी घटनाएं किसी भी चर्चा के योग्य नहीं रह जाती। अगर ऐसा होता तो लोग शिकायतों को भूल जाते। ईश्वर्य उपहारों के बारे में सोचकर वे इतने खुश हो जाते कि उन्हें यह भी याद नहीं रहता कि किसी ने शिकायत के योग्य कुछ किया भी है। यह उस तरह की सोच है, जो सच्चा एहसास पैदा करती है, जिसमें हम एकदम कह उठते हैं, सब तारीफ ईश्वर ही की है।