By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda

प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक सीवी रमन (1888-1970) से एक बार किसी ने कहा था कि वैज्ञानिक खोजें आकस्मिक होतीं हैं। सीवी रमन का जवाब था, “हां, लेकिन ऐसे हादसे तभी होते हैं, जब ज़ेहन तैयार होता है।” सच यह है कि वैज्ञानिक खोज के सभी अवसर पहले से ही प्रकृति में मौजूद हैं। लोग उनके पास से गुज़रते हैं, लेकिन उन्हें पहचान नहीं पाते। एक वैज्ञानिक तैयार ज़ेहन के साथ किसी भी ऐसी वैज्ञानिक रुचि के मामले को तुरंत पहचान लेता है और उसे विकसित करता है, जैसे ही वह इसके सामने आता है। इसी तरह वैज्ञानिक खोज की जाती है।

अध्यात्म का भी यही हाल है। दुनियाभर में आध्यात्मिकता के प्रतीक बिखरे हुए हैं। वास्तव में प्रकृति का प्रत्येक भाग बड़ा या छोटा आध्यात्मिक सामग्री से भरा हुआ है। लोग निशानियों को देखते हैं, लेकिन उनका पता लगाए बिना उन्हें छोड़ देते हैं। हालांकि जिसके पास एक तैयार ज़ेहन होता है, वह उन्हें पहचानने में सक्षम होता है और फिर उन्हें चिंतन के विषय में बदल देता है। यह ‘खोज के साथ-साथ चिंतन’ करने का मामला है, जिससे आध्यात्मिकता का वास्तविक अनुभव होता है। दो दोस्त थे, मोतीराम और रामरतन कपिला, जिनमें से एक जौहरी और दूसरा एसी इंजीनियर था। वे नई दिल्ली के एक शांत इलाके में एक साथ रोज़ाना सुबह की सैर करते थे। एक बार रास्ते में उन्हें एक चमकती हुई चीज़ मिली। रामरतन कपिला ने उसे उठाया और कहा कि यह एक कांच का टुकड़ा है। दूसरी ओर मोतीराम ने उसी चीज़ को तुरंत ही पहचान लिया और बोला कि वह हीरा है। हालांकि उसका दोस्त एयर कंडीशनिंग के विज्ञान में डिग्री होल्डर था, लेकिन वह उस चीज़ को पहचानने में पूरी तरह से विफल रहा कि वह क्या थी। मोतीराम को जौहरी होने के कारण इसे पहचानने में केवल एक सेकंड लगा। ऐसा इसलिए था, क्योंकि रत्नों के विषय में उसका ज़ेहन पहले से तैयार था।

यह कहानी मानसिक तैयारी के महत्व को दर्शाती है। जो कोई भी आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में जीना चाहता है, उसे इस हद तक खुद को प्रशिक्षित करना चाहिए। जो खुद को तैयार करने में लापरवाही करेगा, वह कभी भी जीवन के अनुभवों से आध्यात्मिक पोषण प्राप्त करने में सफल नहीं होगा। आध्यात्मिक प्रचुरता के बीच में भी वह आध्यात्मिक रूप से भूखा ही रहेगा।

 

तैयारी क्या है? किसी बाहरी कोर्स से तैयारी नहीं की जा सकती। यह खुद के प्रशिक्षण का अभ्यास है। केवल जो आत्म-प्रशिक्षण के लिए तैयार हैं, वही आध्यात्मिकता का आनंद उठा सकते हैं। जो ऐसा नहीं करते, वे खुद को कभी आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में विकसित नहीं कर सकते।

खुद की तैयारी के कई पहलू हैं, उदाहरण के लिए, यह समझने की क्षमता कि किसी भी घटना के कौन से उचित और कौन से अनुचित पहलू हैं, ताकि सही कार्रवाई की जा सके। क्या महत्वपूर्ण है और क्या नहीं, इसका ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना इंसान कभी भी आध्यात्मिकता का अनुभव नहीं कर सकता।

खुद को आध्यात्मिक रूप से प्रशिक्षित करने के लिए एक व्यक्ति को जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य करना चाहिए, वह है खुद को बुरा मानने से बचने के लिए तैयार करना। जिस क्षण वह खुद को नाराज़ होने देता है, वह आत्म-प्रशिक्षण का द्वार बंद कर देता है।

सीखने की प्रक्रिया हमेशा समाज के भीतर होती है। सामाजिक संबंधों में व्यक्ति अपने मन से बोलता है, दूसरे के मन से नहीं। इसलिए यह आवश्यक है कि सामाजिक संबंधों के बारे में व्यक्ति शत-प्रतिशत निष्पक्ष (objective) हो। जहां निष्पक्षता की कमी होती है, वहां नाराज़ होने की संभावना भी होती है और जो नाराज़ होता है, वह खुद को वस्तुनिष्ठ (objective) सोच में असक्षम साबित करता  है। आपके सामने हमेशा दो विकल्प होते हैं, आत्मपरक सोच (subjective thinking) या आध्यात्मिकता। यदि आप अध्यात्म के इच्छुक हैं, तो आपको आत्मपरक सोच को छोड़ना होगा। यदि आप आत्मपरक सोच को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आध्यात्मिकता हमेशा आपकी समझ से बाहर रहेगी।

शारीरिक व्यायाम से आध्यात्मिकता प्राप्त नहीं की जा सकती। शारीरिक व्यायाम का आध्यात्मिकता से कोई संबंध नहीं है। आध्यात्मिकता मन की एक अवस्था है। केवल मन की सही स्थिति से ही आध्यात्मिकता को विकसित किया जा सकता है, क्योंकि आध्यात्मिकता सोचने का एक तरीका है यानी यह मन का एक कार्य होता है। जिसे अध्यात्म के साथ जीने की ललक है, उसे अपने मन को इस उद्देश्य के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए, अन्यथा अध्यात्म उसके लिए एक दूर का सपना बनकर रह जाएगा।

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