By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda

यही कारण है कि जानवरों को पालने के लिए जो बड़े-बड़े पार्क बनते हैं, उनमें कृत्रिम रूप से उनके लिए खतरे का आयोजन किया जाता है। जैसे खरगोश के पार्क में बिल्ली डाल दी जाती है या हिरण के पार्क में एक शेर या भेड़िया डाल दिया जाता है। इस प्रकार जानवरों की चौकसी (Alertness) बाकी रहती है। वह अपनी सुरक्षा की खातिर हर समय जीवित व सचेत रहते हैं। यदि ऐसा न हो, तो धीरे-धीरे वह बुझकर रह जाएंगे।

यही बात इंसानों के लिए भी ठीक है। इंसान के अंदर असंख्य योग्यताएं सामान्य स्थिति में सोई हुई रहती हैं, वह जागृत उस समय होती हैं जब उनको झटका लगे। जब वह अमल (व्यवहार) में आएं। किसी भी स्थान पर उनका अवलोकन किया जा सकता है, कि जिन परिवारों में सम्पन्नता के हालात आ जाते हैं, उस परिवार के लोग संवेदनहीन व निम्न बुद्धि हो जाते हैं। इसके विपरीत जिन परिवारों को कठिन परिस्थितियां घेरे हुए हों, उनके लोगों में हर प्रकार की बौद्धिक और व्यवहारिक योग्यताएं उजागर होती हैं।

हकीकत यह है कि दुनिया का प्रबंधन ईश्वर ने जिस ढंग पर बनाया है, वह यही है कि यहां दबने से उभार पैदा हो। कठिनाईयों की पाठशाला में इंसान का उच्च प्रशिक्षण हो। असुरक्षित परिस्थितियों के अंदर मुस्तैदी (सतर्कता) का प्रकटन हो।

इतिहास बताता है कि उन्हीं लोगों ने बड़ी-बड़ी प्रगतियां की जो हालात के दबाव में ग्रस्त थे। कुदरत का यही कानून व्यक्ति के लिए भी है और यही कौमों के लिए।

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