उम्मत के लिए दावती अमल के तीन दर्जे हैं। उम्मत के हर आदमी को अपनी सलाहियत के ऐतबार से इनमें से किसी दर्जे में अपने दाअ होने की हैसियत को साबितशुदा बनाना है। जो लोग इस अमल में शामिल न हों, उनके दूसरे आमाल ख़ुदा की नज़र में बेक़ीमत हो जाएँगे। इस मामले में ख़ुदा का जो मेयार है, वह पैग़बर और पैगंबर की उम्मत, दोनों के लिए बराबर है।