By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda

जीवन में हर दिन हम किसी-न-किसी तरह के बड़े या छोटे – बुरे अनुभव का सामना करते हैं, जिससे बचा नहीं जा सकता। हमारे पास दो विकल्प होते हैं : या तो अनदेखा करना या फिर दूसरा रास्ता ढूँढने का प्रयास करना। पहला विकल्प क्षमा का एक रूप है, जबकि दूसरा बदला लेने का रूप है। कौन-सा बेहतर विकल्प है? हमें परिणाम को देखकर निर्णय लेना चाहिए, क्योंकि यही निर्धारित करता है कि कौन-सा विकल्प बेहतर है।

क्षमा निश्चित रूप से बेहतर विकल्प है, क्योंकि यह ख़ुद को और भी ज़्यादा बुरे अनुभवों से बचाने के लिए एक सिद्ध सूत्र पर आधारित है। उदाहरण के लिए, क्षमा आपको भटकाव से बचाती है, आपके क़ीमती समय को बचाती है, आपको और भी अधिक समस्याएँ पैदा करने से बचाती है। यह किसी भी समस्या का तत्काल समाधान है। इसके विपरीत बदला लेना समस्या को जटिल बनाता है, क्योंकि इससे चीज़ें बद से बदतर हो जाती हैं। जहाँ क्षमा समय उपलब्ध कराती है, वहीं बदला बिना किसी लाभ के समय बरबाद करता है। ऐसी स्थिति में लोग आमतौर पर पूरी तरह से दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं, लेकिन यह एक मूर्खतापूर्ण प्रतिक्रिया है। दूसरे शब्दों में, अगर आपको कुछ दुखद अनुभव हुआ है, तो दूसरी पार्टी पर ध्यान केंद्रित न करें। अपने स्वयं के बारे में सोचें और कार्रवाई का एक तरीक़ा अपनाएँ, जो आपके लिए बेहतर हो। हमारे जीवन में कई बार हमें दो प्रकार के विकल्पों का सामना करना पड़ता है— दूसरों के लिए विरोधी सोच और अपने लिए समर्थक सोच। विरोधी सोच आपको पशु के स्तर तक ले जाती है, जबकि आत्म-समर्थक सोच आपको मानव व्यवहार के उच्च स्तर तक ले जाती है।

अगर क्षमा एक पूर्णविराम (full stop) है, तो बदला अल्पविराम (comma) है। क्षमा का अर्थ है— एक अवांछित स्थिति को समाप्त करना, जबकि बदला लेने का मतलब है— इसे अंतहीन रूप से जारी रखना। क्षमा सकारात्मक सोच का निरंतर जारी रहना है, जबकि बदला नकारात्मक सोच को जन्म देता है। अगर क्षमा आपको सकारात्मक बनाती है, तो बदला लेने से नकारात्मकता को बढ़ावा मिलता है और नकारात्मक सोच सभी प्रकार की बुराइयों को जन्म देती है। कुछ लोग तर्क देंगे कि क्षमा हमेशा काम नहीं करती है, बल्कि जैसे को तैसा नीति को अपनाना बेहतर है, लेकिन जैसे को तैसा कोई वास्तविक समाधान नहीं है; इससे समस्या समाप्त नहीं होती है, इससे केवल निरंतर प्रतिक्रिया का जन्म होता है। क्षमा समस्या को हमेशा के लिए समाप्त कर देती है, जबकि बदले की भावना केवल इसे और बढ़ाती है। ऐसे भी लोग हैं, जो यह तर्क देंगे कि क्षमा की नीति केवल दूसरों को हमारे ख़िलाफ़ आगे ग़लत काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, लेकिन यह एक बेबुनियाद बात है और इसके अलावा प्रकृति के नियम के ख़िलाफ़ भी ।

मनोवैज्ञानिक अध्ययन से पता चलता है कि हर इंसान अहंकार और विवेक के साथ जन्म लेता है। अगर आप ‘जैसे को तैसा’ की नीति का पालन करे, तो यह दूसरे पक्ष के अहंकार को जगाता है, जबकि अगर आप क्षमा की नीति का पालन करें, तो इससे दूसरे व्यक्ति का विवेक सक्रिय होगा और यह एक हक़ीक़त है कि विवादास्पद मामलों में विवेक हमेशा सकारात्मक भूमिका निभाता है। क्षमा और बदला दो अलग-अलग नैतिक संस्कृतियाँ हैं। क्षमा की संस्कृति एक बेहतर समाज के निर्माण में मदद करती है यानी एक ऐसा समाज, जहाँ सकारात्मक मूल्य पनपते हैं, जहाँ सहयोग की भावना प्रबल होती है, जहाँ असमान समूह एक साथ जुड़ते हैं और ख़ुद को एक शांतिपूर्ण समाज में बदलने का काम करते हैं। प्रतिशोध का परिणाम बिलकुल विपरीत है। प्रतिशोध की संस्कृति अविश्वास का माहौल बनाती है, जिसमें हर कोई दूसरों को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है। अंतिम विश्लेषण के रूप में, यह एक स्वस्थ समाज के विकास को ख़ारिज करता है। कभी-न-कभी हर कोई कुछ-न-कुछ ग़लती कर सकता है, लेकिन फिर प्रसिद्ध कहावत ‘ग़लती करना इंसानी स्वभाव है’; को ध्यान में रखा जाना चाहिए। ऐसा होने पर बदला लेने का मतलब सिर्फ़ एक ग़लती नहीं, बल्कि ग़लती के बाद ग़लती करना है। इसके विपरीत क्षमा का अर्थ है— ग़लत को सही में परिवर्तित करना। यह स्वीकार करना बेहतर है कि अगर ग़लती करना मानवीय है, तो क्षमा करना उससे भी बड़ी इंसानियत है। वास्तव में, यह वह अवधारणा है, जो प्रसिद्ध कहावत में व्यक्त की गई है : “to err is human but to forgive is divine.”

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