Hadith-e-Rasool: Ek Sangrah
हदीस का अध्ययन अप्रत्यक्ष रूप से कुरान का अध्ययन है। जब सैद्धांतिक रूप से यह प्रमाणित हो जाता है कि यह इस्लाम के पैगम्बर की वाणी है तो उसकी प्रामाणिकता क़ुरआन के समान हो जाती है। जहाँ तक विषयों का संबंध है, कुरान में धर्म की मूल शिक्षाओं का वर्णन है और हदीस में धर्म की विस्तृत शिक्षाओं का वर्णन। हक़ीक़त यह है कि कुरान की मौलिक शिक्षाओं को हदीस से ही विस्तार से समझा जा सकता है। हदीस की मदद के बिना कुरान को समझना संभव नहीं है। एक हदीस को समझने के लिए उस हदीस के पाठ पर गहराई से विचार करना चाहिए। तभी इसका पूरा अर्थ मनुष्य के सामने आ सकता है।
हदीस-ए-रसूल
एक संग्रह
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान
अनुवादक
अज़रा चौधरी
संपादन टीम
मोहम्मद आरिफ़
ख़ुर्रम इस्लाम क़ुरैशी
फ़रहाद अहमद
इरफ़ान रशीदी
राजेश कुमार
भूमिका
पैग़ंबर मुहम्मद साहब से संबंधित कथन और कार्य को हदीस कहते हैं। पवित्र हदीस की महिमा और इस्लाम में इसका स्थान इससे प्रकट है कि हदीस वास्तव में पैग़ंबर-ए-इस्लाम मुहम्मद साहब के कथनों और कार्यों का समूह है और इसकी महानता और स्थान को उस चीज़ ने और बढ़ा दिया है कि हदीसें वास्तव में क़ुरआन का स्पष्टीकरण और विस्तार हैं। इसलिए अल्लाह और उसके पैग़ंबर मुहम्मद साहब के आशय की सही जानकारी और पूर्ण इस्लामी जीवन को अपनाने के लिए ‘क़ुरआन व हदीस’ दोनों का ज्ञान, दोनों से संबंध और दोनों को सामने रखना आवश्यक है।
पैग़ंबर मुहम्मद साहब के संगी-साथियों के एक बड़े दल ने हदीसों को लिखने और उनको इकट्ठा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (74 हिजरी-101 हिजरी) ने समस्त इस्लामी शासन में हदीसों को इकट्ठा करने व उनके लेखन के लिए सरकारी दिशा-निर्देश लागू किए।
दूसरी शताब्दी हिजरी के अंत में और उसके बाद केवल हदीसों को इकट्ठा करने की ओर ध्यान दिया गया और हदीसों की पुस्तकों की रचना हुई, जिनमें पैग़ंबर-ए-इस्लाम के एक-एक संगी-साथियों से उद्धृत पैग़ंबर-ए-इस्लाम की समस्त हदीसों को इकट्ठा किया गया।
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम1 हज़रत मुहम्मद ने कहा— “इस्लाम के पाँच मूल सिद्धांत हैं—
1. यह दृढ़ विश्वास होना कि केवल एकमात्र ईश्वर ही पूजनीय है और हज़रत मुहम्मद ईश्वर के बंदे और पैग़ंबर हैं।
2. नमाज़ नियमित रूप से पढ़ना।
3. ज़कात2 देना।
4. हज करना।
5. रमज़ान महीने के रोज़े रखना।”
***
अबू उमामा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिसने ईश्वर के लिए प्रेम किया, ईश्वर के लिए बैर किया, ईश्वर के नाम पर ग़रीब और ईश्वर के लिए दिया और ईश्वर के लिए रोका, तो उसने अपना ईमान3 पूरा कर लिया।”
***
अम्र बिन अबसा बताते हैं कि मैंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से पूछा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! हमें समझाइए कि ईमान क्या है?”
पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा—
“1. धैर्य एवं धीरज
2. व्यवहार में विनम्रता।”
***
अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिसने हृदय से ईश्वर को अपना स्वामी (मालिक), इस्लाम को अपना दीन (धर्म) और मुहम्मद को ईश्वर का पैग़ंबर स्वीकार कर लिया, उसने ईमान की पूँजी को संग्रहीत कर लिया।”
***
अनस के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद अपने धर्मोपदेश में सदैव कहते, “जो ईमानदार नहीं और जो वचन भंग करता है, वह ईमान वाला हो ही नहीं सकता।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “लालच और ईमान किसी व्यक्ति के हृदय में एक साथ नहीं रह सकते।”
***
अबू उमामा के कथन के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “सादगी भी ईमान का ही एक हिस्सा है।”
***
उमर बिन खत्ताब बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का कहना है— “कर्म एवं आचार-व्यवहार का मूल आधार नीयत पर केंद्रित है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिफल उसकी नीयत के अनुसार ही प्राप्त होता है। इसलिए जिसने ईश्वर और उसके पैग़ंबर की ख़ातिर अपने वतन को त्यागा यानी प्रवास किया तो उसका त्याग ईश्वर और पैग़ंबर के लिए है और जिसने सांसारिक सुख-संपत्ति प्राप्त करने की नीयत से या किसी महिला की चाहत में त्यागा तो उसका त्यागना उसी के लिए है, जिसके लिए उसने प्रवास किया।
***
अबू उमामा बताते हैं कि एक व्यक्ति पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के पास आया और सवाल किया कि ऐसे व्यक्ति का क्या परिणाम है, जो उच्च प्रतिफल एवं प्रसिद्धि की इच्छा के लिए जिहाद (धर्मयुद्ध) पर निकलता है? पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ऐसे व्यक्ति के हिस्से में अवश्य ही कुछ नहीं है।” उसने अपना सवाल तीन बार दोहराया, लेकन पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद हर बार यही बताते रहे कि उसके हिस्से में कुछ भी नहीं है। अंततः आपने कहा — “ईश्वर केवल वही कर्म स्वीकार करता है, जो उसकी ख़ुशी की नीयत से किए गए हैं।”
***
अब्दुल्लाह बिन मसऊद बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का कहना है— “जो व्यक्ति दिखावे के लिए अन्य लोगों की उपस्थिति में नमाज़ उम्दा तरीक़े से पढ़ता है, लेकिन तनहाई में नमाज़ को सही ढंग से अदा नहीं करता, ऐसा व्यक्ति अपने ईश्वर का अनादर करता है।”
***
मिक़दाद के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “झूठे प्रशंसकों और चापलूस लोगों से बचकर रहो, उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों के भँवर-जाल में न फँसो।”
***
अनस बिन मालिक बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “सच्चे दिल से माफ़ी माँगने वाले बंदे से ईश्वर इससे कहीं अधिक प्रसन्न होता है, जैसे किसी का ऊँट रेगिस्तान में खो जाने के बाद अचानक मिलने पर उसका मालिक प्रसन्न हो जाता है।”
***
मुआज़ बिन जबल बताते हैं कि जब उन्हें यमन की सत्ता सौंपी गई तो उन्होंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से निवेदन किया— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! मुझे कुछ निर्देश दीजिए।” तब आपने कहा— “अपने ईमान को विशुद्ध रखना यानी ईमान में मिलावट से बचना, क्योंकि कम मात्रा में किए गए नेक काम भी तुम्हारे लिए उपयोगी सिद्ध होंगे।”
***
अम्र बिन आस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने संदेश भेजा कि कवच पहनकर और हथियारों से सुसज्जित होकर मेरे पास आइए। जब मैं हज़रत मुहम्मद के पास पहुँचा तो आप वज़ू4 करने में व्यस्त थे। आपने कहा— “ऐ अम्र! मैं तुम्हें एक मुहिम पर भेज रहा हूँ। ईश्वर की कृपा से तुम सकुशल (safe) वापस लौटोगे और अपने साथ माल-ए-ग़नीमत5 भी लाओगे और मैं तुम्हें उसमें से एक हिस्सा उपलब्ध कराऊँगा।” मैंने जवाब में कहा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! मैंने धन-प्राप्ति की इच्छा से प्रवास नहीं किया, बल्कि मेरा प्रवास करना केवल ईश्वर और उसके पैग़ंबर की प्रसन्नता के लिए था।” इस पर आपने कहा— “नेक माल नेक आदमी के लिए सबसे बढ़िया पूँजी है।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “आपमें से कोई भी व्यक्ति तब तक सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता, जब तक उसकी प्रत्येक इच्छा उसके अधीन न हो यानी इस्लाम के अनुसार न हो जिसे देकर मुझे भेजा गया है।”
***
अबू सालबा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर ने कुछ चीज़ों को अनिवार्य किया है, इसलिए उनकी अनदेखी न करो और कुछ चीज़ों को वर्जित किया है, इसलिए उन्हें करने का अपराध न करो। ईश्वर द्वारा निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन न करो और कुछ मामलों में चुप रहने के लिए कहा गया है, इसलिए उन्हें जानने के लिए उत्सुक न रहो।”
***
बुरैदा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “हमारे और लोगों के बीच नमाज़ की प्रतिज्ञा संबंध-स्वरूप है। जिसने नमाज़ की प्रतिज्ञा भंग की, उसने कृतघ्नता की यानी कुफ़्र किया।”
***
उमर बिन ख़त्ताब ने अपने अधीन पदाधिकारियों को संदेश भेजा कि मेरी नज़र में आप सबके लिए सबसे पहला काम नमाज़ की नियमितता (regularity) है। जिस किसी ने भी नमाज़ की अहमियत को समझा और नियमित रूप से पढ़ा, उसने अपने धर्म की रक्षा की और जिसने नमाज़ की अनदेखी की, उससे अन्य कार्यों के प्रति निष्ठा की अपेक्षा नहीं की जा सकती।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “सामूहिक रूप से पढ़ी जाने वाली नमाज़ का महत्व व्यक्तिगत रूप से पढ़ी जाने वाली नमाज़ की अपेक्षा 27 गुणा अधिक है।”
***
अबू दरदा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का बयान है— “जिस बस्ती में 3 मुसलमान हों और वे सामूहिक रूप से नमाज़ अदा न करें तो उन पर शैतान प्रभावी हो जाएगा। इसलिए आप सब सामूहिक रूप से नमाज़ अदा किया करें; क्योंकि भेड़िये की शिकार वही बकरी बनती है, जो अपने रेवड़ से अलग होती है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “आपमें से जो कोई भी इमामत6 का कर्तव्य निभाए तो नमाज़ को लंबा न करे, क्योंकि नमाज़ियों में कमज़ोर, बीमार और बुज़ुर्ग लोग भी होते हैं, लेकिन जब कोई व्यक्तिगत नमाज़ पढ़े तो वह जितनी लंबी चाहे उतनी लंबी नमाज़ पढ़ सकता है।”
***
अबू क़तादा के कथन के अनुसार मैं पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद की अगुआई में जुमे की नमाज़ पढ़ता था। आपके नमाज़ पढ़ाने का तरीक़ा जितना संतुलित और हृदयग्राही (fascinating) होता था, उतना ही संतुलित एवं हृदयग्राही होता था आपका नमाज़ से पहले का धर्मोपदेश।
***
अबू हुरैरा के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “प्रत्येक चीज़ की शुद्धि होती है। शरीर की शुद्धि रोज़ा है और रोज़ा आधा सब्र है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो रोज़ेदार झूठ बोलने और छल-कपट का बहिष्कार नहीं करता तो ईश्वर को उसके खाना-पीना छोड़ने से कोई मतलब नहीं।”
***
अबू हुरैरा के कथन के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “रोज़ा सुरक्षा का पर्याय (alternative) है। जब कोई रोज़े की हालत में हो तो वह न कोई अश्लील बात करे और न ही हो-हल्ला करे। अगर उसे कोई बुरा-भला कहे या झगड़ा करे तो वह केवल इतना कह दे कि मैं रोज़े से हूँ यानी रोज़ेदार होने के कारण मैं आपसे झगड़ना नहीं चाहता।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का बयान है— “जिस व्यक्ति ने परलोक सुधारने यानी पुण्य-प्राप्ति की नीयत से रमज़ान महीने के रोज़े रखे तो उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाएँगे और जिसने ईमान के साथ रमज़ान की रातों में रतजगा करके ईश्वर की इबादत7 की तो उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाएँगे।”
***
सहल बिन सा’द का कथन है कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “लोग भलाई पर रहेंगे, जब तक वे इफ़्तार में यानी रोज़ा खोलने में जल्दी करेंगे।”
***
अनस बिन मालिक कहते हैं कि जब हम लोग पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के साथ सफ़र में होते थे तो रोज़ेदार बेरोज़ेदार (रोज़ा न रखने वाला) पर कोई दोषारोपण (reprechension) न करता और न ही बेरोज़ेदार रोज़ेदार को कुछ कहता।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का बयान है— “जिस किसी ने रमज़ान महीने का एक भी रोज़ा बिना किसी कारण या बीमारी के छोड़ दिया तो ज़िंदगी भर रोज़े रखने पर भी उस रोज़े की क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती।”
***
अनस कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “रोज़ा रखने से पहले सहरी8 खाओ, क्योंकि सहरी में बरकत है।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने फ़ितरा की ज़कात9 को आवश्यक ठहराया है। रोज़े में होने वाली बेहूदा (nonsense) बातों एवं वर्जित कार्यकलापों से शुद्धिकरण के लिए और असहाय लोगों की सहायता के लिए।
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर ने मुसलमानों के लिए ज़कात को अनिवार्य किया है। यह संपन्न लोगों द्वारा निर्धन लोगों को दी जाती है।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का आदेश है— “जब तुमने अपने माल की ज़कात अदा कर दी तो समझ लो कि तुमने अपने कर्तव्य को निभा दिया। जो कोई नाजायज़ माल को संचित करे, फिर उसमें से दान करे तो इसके परिणामस्वरूप उसे पुण्य-प्राप्ति की अपेक्षा गुनाहों का बोझ ढोना पड़ेगा।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर के कथन के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस ज़मीन की सिंचाई बारिश, नहर या दरिया आदि के जल से हो तो उसकी पैदावार का दसवाँ भाग ईश्वर के नाम पर ग़रीबों आदि के लिए है और जिस ज़मीन की सिंचाई ख़ुद की जाए, उस पर दसवें का आधा यानी पाँचवाँ भाग।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस व्यक्ति को ईश्वर ने धन-संपत्ति आदि से संपन्न किया और उसने (ढाई प्रतिशत के हिसाब से) ज़कात न दी तो क़यामत10 के दिन उसकी धन-संपत्ति साँप की तरह हो जाएगी, जिसके फन पर दो काले निशान होंगे, जिसका उसके गले में तौक़11 पहनाया जाएगा, जो उसके दोनों जबड़ों को जकड़ लेगा और कहेगा कि मैं तुम्हारी वही धन-संपत्ति हूँ, जिसे तुमने सँभालकर रखा था।”
***
अबू सईद ख़ुदरी कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो मोमिन12 किसी भूखे मोमिन का पेट भरेगा यानी उसे खाना खिलाएगा तो क़यामत के दिन ईश्वर उसे जन्नत के फल-मेवे आदि प्रदान करेगा और जो मोमिन किसी प्यासे मोमिन की प्यास बुझाएगा, उसे ईश्वर क़यामत के दिन सीलबंद पेय पदार्थ प्रदान करेगा। और जो मोमिन किसी मोमिन का तन ढाँपेगा, उसे ईश्वर क़यामत के दिन स्वर्ग के पहनावे से सुसज्जित करेगा।”
***
अबू ज़र कहते हैं कि मैं पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के पास आया। उस समय आप काबा के साये में बैठे हुए थे। जब आपकी नज़र मुझ पर पड़ी तो आपने कहा— “वे लोग पूरी तरह घाटे में रहने वाले हैं।” मैंने पूछा— “मेरे माँ-बाप आप पर न्योछावर हों, वे कौन लोग हैं?” आपने कहा— “अधिकतर अत्यधिक धनवान लोग, सिवा उसके जो इस तरह था, उसी तरह से दें। अपने सामने वालों को, पीछे वालों को और दाएँ-बाएँ वालों को यानी अपने माल से आगे-पीछे वाले ग़रीबों की सहायता करें, लेकिन ऐसे धनवान लोग बहुत कम हैं।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से विनम्र निवेदन किया गया कि सर्वोत्तम कार्य कौन-सा है? आपने कहा— “ईश्वर और उसके पैग़ंबर पर ईमान लाना यानी सच्चा और पक्का विश्वास करना।” पुनः निवेदन किया गया— “फिर इसके बाद?” आपने कहा— “ईश्वर के मार्ग में जिहाद13 करना।” फिर से निवेदन किया गया— “फिर से इसके बाद?” आपने कहा— “ईश्वर की कृपा और मोक्ष-प्राप्ति के लिए हज करना।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो कोई व्यक्ति हज, उमरह या जिहाद की नीयत से घर से निकला, फिर रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई तो ईश्वर उसके खाते में हज, उमरह या जिहाद का प्रतिफल (पुण्य) लिख देता है।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस किसी को हज पर जाने की इच्छा हो, उसे चाहिए कि वह जाने में जल्दी करे, क्योंकि वह व्यक्ति कभी भी बीमार पड़ सकता है, कभी भी सवारी इत्यादि की कठिनाई उत्पन्न हो सकती है और कभी भी कोई ज़रूरत रास्ते की रुकावट बन सकती है।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “समर्थवान (capable) मोमिन असमर्थवान (incapable) मोमिन से श्रेष्ठ है, प्रत्येक के लिए भलाई है। सदैव उस चीज़ की इच्छा करो, जिसमें आपके लिए भलाई हो और ईश्वर से सहायता माँगो और धैर्यशील रहो। अगर आप किसी संकट में घिरे हों तो यूँ मत कहो कि काश ! मैंने ऐसा किया होता तो आज संकटग्रस्त न होता, बल्कि यूँ कहो कि ऐसा होना मेरे भाग्य में लिखा था। ईश्वर जो चाहता है, करता है; क्योंकि ‘काश’ शब्द शैतानी करतूत के द्वार की चाभी है।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास कहते हैं कि एक दिन मैं सवारी पर पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के पीछे बैठा हुआ था। आपने कहा— “ऐ लड़के ! मैं तुम्हें कुछ बातें समझा रहा हूँ। तुम ईश्वर को याद रखोगे तो ईश्वर तुम्हें याद रखेगा। अगर ईश्वर को याद रखोगे तो उसे अपने नज़दीक पाओगे। जब किसी चीज़ की इच्छा करो तो केवल ईश्वर से करो। सहायता माँगो तो केवल ईश्वर से माँगो। समझ लो, विश्व के समस्त प्राणी मिलकर भी ईश्वर की इच्छा के विपरीत तुम्हें कोई लाभ नहीं पहुँचा सकते और न ही कोई हानि पहुँचा सकते हैं, चाहे कितना ही प्रयास क्यों न कर लें। हाँ, अगर ईश्वर ने तुम्हारे भाग्य में लिख दिया हो तो अलग बात है।”
***
उम्मे-सलमा कहती हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद उनके पास थे। आपने एक सेविका को बुलाया। उसने आने में देर कर दी। इससे आपके चेहरे पर क्रोध के भाव प्रकट हो गए। उम्मे-सलमा ने परदे से बाहर झाँका तो देखा कि वह खेलने में व्यस्त है। उस समय पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के हाथ में मिसवाक (दातुन) थी। आपने कहा— “अगर मुझे क़यामत में मिलने वाले प्रतिफल (retribution) का भय न होता तो मैं तुम्हें इस मिसवाक से मारता(दंड देता)।”
***
अनस कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क़यामत के दिन नरक में जाने वाले दोषियों में से किसी एक को लाया जाएगा, जो सांसारिक जीवन में सर्वसुविधासंपन्न था। तब उसे नरक में फेंक दिया जाएगा। फिर उससे पूछा जाएगा— ‘ऐ आदम की संतान! क्या तुम कभी सुख-शांति में रहे हो?’ जवाब में वह कहेगा— ‘ईश्वर की सौगंध! मेरे मालिक नहीं।’ फिर स्वर्ग में जाने वालों में से एक को लाया जाएगा, जिसने संसार में अभावों यानी कठिनाइयों की सर्वाधिक असहनीय मार को झेला होगा। उसे स्वर्ग में भेजा जाएगा। इसके बाद उससे पूछा जाएगा— ‘ऐ आदम की संतान! क्या तुमने कभी कोई कष्ट झेला है? क्या तुम पर कभी कठिन दिन गुज़रे हैं?’ वह जवाब देगा— ‘ईश्वर की सौगंध! कभी नहीं। मुझे कभी कोई कष्ट नहीं हुआ और न ही कभी मैं किसी कठिन परिस्थिति से गुज़रा हूँ।’ ”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने एक आयत14 (उस दिन ज़मीन अपनी ख़बरें बताएगी) पढ़ी, फिर कहा— “क्या आपको मालूम है कि उसकी ख़बरें क्या होंगी?” लोगों ने पूछा— “यह तो ईश्वर और उसके पैग़ंबर ही जानते हैं।” आपने कहा— “ज़मीन की ख़बरें इस तरह होंगी कि वह प्रत्येक पुरुष और महिला के बारे में अपना साक्ष्य (testimony) देगी कि अमुक ने मेरे सीने पर बैठकर यह-यह कर्म किए और उस-उस समय किए। यही ज़मीन की ख़बरें होंगी।”
***
सईद बिन ज़ैद बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “बालिश्त भर ज़मीन भी अगर कोई बलपूर्वक किसी से छीन लेगा तो क़यामत के दिन सात ज़मीनों का तौक़ उसकी गर्दन में पहनाया जाएगा।”
अब्दुल्लाह बिन मसऊद बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “वह व्यक्ति बिल्कुल भी स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर पाएगा, जिसके हृदय में कण भर बराबर भी घमंड होगा।” एक व्यक्ति बोला— “हर कोई चाहता है कि उसका पहनावा अच्छा हो, उसका जूता अच्छा हो और वह सुंदर दिखे।” आपने कहा— “ईश्वर सुंदर है और सुंदरता को पसंद करता है। घमंड से अभिप्राय सच का इनकार करना और अन्य प्राणियों को हीन समझने से है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब इंसान ईश्वर की पसंदीदा कोई बात या काम करता है, चाहे उस बात या काम का उसकी नज़र में कोई विशेष महत्व न हो, लेकिन ईश्वर इसके फलस्वरूप उसे अपने विशेष उपहारों से सुशोभित करता है; लेकिन जब इंसान ईश्वर को नाराज़ करता है यानी ऐसा काम करता है जिससे ईश्वर नाराज़ होता है, चाहे उसे करने में उसे कुछ बुरा महसूस न होता हो, फिर भी उसका बुरा काम उसे नरक की आग का निवाला बना देता है।”
***
अबू ज़र बताते हैं कि मैं पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के पास गया और प्रार्थना की कि मुझे कुछ सदुपदेश (sermon) दीजिए। आपने कहा— “मैं तुम्हें हमेशा ईश्वर से डरने की नसीहत (edification) करता हूँ, क्योंकि वही तुम्हारी सभी उलझनों का समाधान करने वाला है।” मैंने निवेदन किया— “कुछ और भी सीख दीजिए।” आपने कहा— “क़ुरआन पढ़ा करो और हमेशा ईश्वर का स्तुतिगान (glorification) करते रहो, क्योंकि तुम आसमान में याद किए जाओगे और ज़मीन में वह तुम्हारे लिए प्रकाश होगा।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर बंदे को पश्चात्ताप करने की अवधि तब तक प्रदान करता है, जब तक उसकी साँस चलती रहती है यानी जब तक उसके शरीर में प्राण रहते हैं।
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस तरह पानी से भीगने पर लोहे को ज़ंग लग जाता है, ठीक उसी तरह इंसान के दिलों को भी ज़ंग लग जाता है।” आपसे पूछा गया— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! उसे साफ़ करने का कोई उपाय बताइए।” आपने कहा— “मौत को हमेशा याद रखो और क़ुरआन को नियमित रूप से पढ़ा करो।”
***
अबू ज़र ग़िफ़ारी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “संयम हलाल को हराम करने या धन-दौलत से तटस्थता का नाम नहीं है, बल्कि संयम से अभिप्राय इस तथ्य पर दृढ़ विश्वास करना है कि प्रत्येक चीज़ ईश्वर के हाथ में है और जो कुछ मेरे पास है, उसका मालिक भी ईश्वर ही है, क्योंकि अगर तुम कभी किसी संकट में घिर जाओ तो उसके पुण्य से जो कुछ तुम्हारे पास शेष रहे, तुम उसी से संतुष्ट रहो।”
***
मुआज़ बिन जबल कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने जब मुझे यमन का शासक नियुक्त किया तो कहा— “तुम ऐशपरस्ती से बचना, क्योंकि ईश्वर के बंदे ऐशपरस्त नहीं होते।”
***
अबू मूसा अशअरी कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो कोई अपने लौकिक जीवन (earthly life) को अधिक महत्व देगा, वह अपने पारलौकिक जीवन (heavenly life) को नष्ट कर देगा और जो कोई अपने पारलौकिक जीवन को महत्वपूर्ण समझेगा, उसके लिए लौकिक जीवन महत्वहीन होगा। इसलिए तुम हमेशा रहने वाली (eternal) चीज़ को नश्वर चीज़ पर प्राथमिकता दो।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिसने अपने दास को अकारण ही एक भी चाबुक मारा, क़यामत के दिन उससे इसका बदला लिया जाएगा।”
***
शद्दाद बिन औस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “बुद्धिमान वह है, जो अपनी इच्छाओं पर संयम रखे और अपना परलोक सँवारने के लिए अच्छे कर्म करे और लाचार वह है, जो अपनी इच्छाओं के वशीभूत रहता है और फिर ईश्वर से व्यर्थ ही उम्मीद लगाए रहता है।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क़यामत के दिन हक़दार को उसका हक़ दिलाया जाएगा, यहाँ तक कि सींग वाली बकरी से बिना सींग बकरी का हिसाब लिया जाएगा। तात्पर्य यह है कि इंसानों से ही नहीं, जानवरों आदि से भी उनकी ज़्यादती का हिसाब लिया जाएगा।”
***
नोमान बिन बशीर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “नरक में सबसे कम यातना उस इंसान को मिलेगी, जिसके पाँव के नीचे दो अंगारे रखे जाएँगे, जिनकी तपिश से उसका दिमाग़ ऐसे उबलने लगेगा, जैसे चूल्हे पर देगची या पतीला खौलता है।”
***
अबू हुरैरा असलमी कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क़यामत के दिन इंसान एक क़दम भी न उठा पाएगा, जब तक उससे पाँच सवालों के जवाब नहीं ले लिये जाएँगे—
1. आयु के बारे में कि कैसे व्यतीत की?
2. ज्ञान के संदर्भ में कि उस पर कितना अमल किया?
3. धन-संपत्ति के संदर्भ में कि किस तरह से अर्जित की?
4. कमाए हुए धन को किस तरह और कैसे खर्च किया?
5. शरीर के संदर्भ में कि इसे किस काम में लगाया?”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो इंसान स्वर्गवासी होगा, वह हमेशा चैन व अमन और आराम में रहेगा, वह बिल्कुल अभावग्रस्त न होगा। न कभी उसके कपड़े पुराने होंगे और वह हमेशा जवान रहेगा। स्वर्ग में ऐसे-ऐसे उपहार हैं, जिन्हें न तो किसी आँख ने देखा, न कभी किसी कान ने सुना और न ही कोई इंसान कभी उसकी कल्पना कर पाया।”
***
असमा बिंते अबू बक्र कहती हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद अपने धर्मोपदेश में क़ब्र की परीक्षा के संदर्भ में व्याख्यान दे रहे थे। आपने कहा— “क़ब्र में इंसान से जीवन-संबंधी सवाल पूछे जाएँगे।” जब आप उपदेश दे रहे थे तो सभी मुसलमान फूट-फूटकर रो रहे थे।
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस यात्री को अंदेशा होता है, वह सुबह-सवेरे यात्रा के लिए निकलता है और जो सुबह-सवेरे यात्रा पर निकलता है, वह अपने गंतव्य (destination) तक पहुँच जाता है। समझ लो कि ईश्वर का सौदा अमूल्य है, जान लो कि ईश्वर से प्रेम का सौदा स्वर्ग है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब स्वर्ग में जाने वाले स्वर्ग में प्रवेश कर जाएँगे तो एक पुकारने वाला पुकारेगा— ‘अब तुम हमेशा निरोग रहोगे, कभी रोगग्रस्त न होगे। अब तुम अनश्वर हो, तुम्हें मौत न आएगी। अब तुम हमेशा जवान रहोगे, कभी बूढ़े न होगे। अब तुम हमेशा ख़ुशहाल रहोगे, परवशता (subordination) की पीड़ा कभी नहीं सहनी पड़ेगी।’ ईश्वर के कथन के अनुसार, इसका तात्पर्य यह है कि यही वह स्वर्ग है, जिसके बारे में आपसे वादा किया गया था। तुमने सांसारिक जीवन में जो अच्छे कर्म किए, उनके फलस्वरूप तुम्हें स्वर्ग का उत्तराधिकारी बना दिया गया।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि एक आदमी ने कहा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! मेरे सद्व्यवहार का सबसे बड़ा अधिकारी कौन है?” आपने कहा— “तुम्हारी माँ!” उसने फिर पूछा— “उसके बाद कौन?” आपने कहा— “तुम्हारी माँ!” उसने अपनी बात को दोहराते हुए फिर पूछा— “इसके बाद कौन?” आपने कहा— “तुम्हारी माँ!” उसने फिर से पूछा— “फिर कौन?” आपने कहा— “तुम्हारे पिता !”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “उस आदमी की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाए, उस आदमी की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाए, उस आदमी की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाए।” सवाल किया गया— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! किस आदमी की?” आपने कहा— “जिसने अपने बूढ़े माँ-बाप की या दोनों में से किसी एक की सेवा न की। इसीलिए वह स्वर्ग का भागी न बन सका।”
***
अबू उसैद कहते हैं कि हम लोग पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के पास थे कि बनू सलमा का एक आदमी आया। उसने कहा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! क्या माँ-बाप की मौत के बाद भी मुझ पर उनका कोई अधिकार शेष रहता है, जिसे मैं अदा करूँ?” आपने इसके जवाब में कहा— “हाँ! उनके लिए दुआ माँगना, उनके लिए क्षमा-याचना करना और उनकी वचन-पूर्ति करना, उनके संबंधियों का यथाशक्ति सहयोग करना और उनके दोस्तों का सम्मान करना।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “उस आदमी के परोपकार का कोई अर्थ नहीं, जो प्रत्युपकार (requital) की उम्मीद करे। परोपकारी तो वह व्यक्ति है, जो संबंध-विच्छेद (secession) के बाद भी उपकार करे।”
***
असमा बिंते अबू बक्र कहती हैं कि हुदैबिया संधि के समय मेरी माँ (दूध पिलाने वाली दाई माँ) मेरे पास आई, जो इस्लाम की पैरोकार यानी ईमान वाली न थी। मैंने कहा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! मेरी मुशरिक15 माँ मेरे पास सहायता लेने के लिए आई। क्या मैं उसकी सहायता के लिए उसे कुछ दूँ?” पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “हाँ! यथाशक्ति उसकी सहायता करो।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब इंसान मर जाता है तो उसके कर्मों का खाता बंद हो जाता है, इसके अलावा इन तीनों के—
1. सदक़ा-ए-ज़ारिया यानी ऐसा सद्कर्म जिसका फल (पुण्य) हमेशा जारी रहे।
2. ऐसा ज्ञान, जो हमेशा पथ-प्रदर्शन करता रहे।
3. नेक या सदाचारी संतान, जो माँ-बाप के हक़ में दुआ करती रहे।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि एक आदमी ने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से कहा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! मेरे कुछ रिश्तेदार हैं, मैं उनके साथ उपकार करता हूँ, लेकिन वे संबंध-विच्छेद की बात करते हैं। मैं उनके साथ अच्छा व्यवहार करता हूँ, लेकिन वे मेरे साथ कटु व्यवहार करते हैं। मैं सहन करता हूँ, लेकिन वे अक्खड़ता से पेश आते हैं।” आपने कहा— “अगर तुम सच में ऐसे ही हो, जैसा कि तुमने बताया तो मानो तुम उनके चेहरों को धूल-धूसरित (dusty) कर रहे हो यानी उनके सिरों पर खाक डाल रहे हो और तुम्हारे साथ ईश्वर की ओर से उनके विरुद्ध हमेशा एक सहायक नियुक्त रहेगा, जब तक तुम अपने इस कर्म को निभाते रहोगे।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से सवाल किया गया कि सर्वश्रेष्ठ महिला की परिभाषा क्या है यानी आप किसे सबसे बढ़िया महिला मानते हैं? आपने बताया— “ऐसी महिला जिसे देखकर उसका पति राहत महसूस करे यानी ख़ुश हो जाए, अपने पति की आज्ञा का पालन करे, आपनी ज़ात से या अपनी धन-संपत्ति के द्वारा ऐसा व्यवहार न करे जिससे उसका पति दुखी हो या उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचे।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ऐसा आदमी जिसकी दो पत्नियाँ हों और वह दोनों के साथ एक समान व्यवहार न करता हो यानी पक्षपात करता हो, ऐसा आदमी क़यामत के दिन ऐसी स्थिति में होगा कि वह अपने शरीर के आधे भाग से वंचित होगा।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “कोई मोमिन मर्द अपनी मोमिन पत्नी से घृणा न करे। संभव है कि उसकी कोई एक आदत उसे पसंद न हो, लेकिन उसमें कोई अन्य ऐसा गुण हो, जो उसे बहुत ज़्यादा प्रिय हो या उसके स्वभाव के अनुकूल हो।”
***
अबू मसऊद कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “कोई आदमी जब अपने परिवार वालों पर ईश्वर के आदेशानुसार ख़ुशी से ख़र्च करता है तो वह उसके लिए पुण्य कर्म बन जाता है।”
***
आयशा कहती हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से पूछा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! मेरे दो पड़ोसी हैं तो मैं उनमें से किस पड़ोसी के घर पर कुछ उपहार भेजूँ?” आपने बताया— “दोनों में से जिसका दरवाज़ा आपके दरवाज़े के ज़्यादा नज़दीक हो।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास के कथन के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को यह कहते हुए सुना— “वह व्यक्ति मोमिन बिल्कुल नहीं, जो स्वयं भरपेट खाए, लेकिन उसका पड़ोसी भूखा रहे।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि एक व्यक्ति ने कहा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! अमुक महिला के बार में आम चर्चा है कि वह बड़ी नमाज़ी, रोज़े रखने वाली और दानी है, लेकिन स्वभाव से कटु (bitter) होने के कारण अपने पड़ोसियों को परेशान रखती है।” आपने कहा— “वह नरक में जाएगी।” उस व्यक्ति ने फिर बोला— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! अमुक महिला कम नफ़ली नमाज़ (फ़र्ज़ नमाज़ों के अतिरिक्त) पढ़ती है, नफ़ली रोज़े भी कम रखती है और सदक़ा भी कम करती है, कुछ टुकड़े पनीर के दे देती है, लेकिन अपने पड़ोसियों को परेशान नहीं करती यानी कड़वा नहीं बोलती।” आपने कहा— “वह स्वर्ग में जाएगी।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— ईश्वर की सौगंध! वह मोमिन नहीं, ईश्वर की सौगंध! वह मोमिन नहीं, ईश्वर की सौगंध! वह मोमिन नहीं!” लोगों ने पूछा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! कौन?” आपने बताया— “ऐसा व्यक्ति जिसका पड़ोसी उसकी ज़्यादतियों के कारण परेशान रहे।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “मोमिन मोमिन का दर्पण है और मोमिन आपस में भाई हैं। वे एक-दूसरे को नुक़सान नहीं पहुँचाते और ग़ैर-मौजूदगी में एक-दूसरे की सुरक्षा करते हैं।”
***
अनस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने मुझसे कहा— “ऐ मेरे बेटे! अगर तुम ऐसा कर सको तो सुबह यूँ करो और शाम को यूँ करो कि तुम्हारे हृदय में किसी के लिए बुरी भावना न हो।” आपने दोबारा कहा— “मेरे बेटे! यह मेरा तरीक़ा है और जिसने मेरे तरीक़े को अपनाया, समझो उसने मुझे अपनाया और जिसने मुझे अपनाया तो यक़ीनन वह स्वर्ग में मेरा साथी होगा।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “प्रत्येक व्यक्ति चरवाहा है और प्रत्येक से उसके रेवड़ (झुंड) के बारे में पूछताछ की जाएगी। शासक भी एक चरवाहे की तरह है, उससे उसके रेवड़ (प्रजा) के बारे में पूछताछ की जाएगी। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार वालों का चरवाहा है। पत्नी अपने पति के घर-परिवार (बच्चों) की संरक्षक है। इसलिए जान लो कि प्रत्येक चरवाहे की तरह है और उससे उसके रेवड़ के बारे में पूछताछ की जाएगी।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर जब भी कुछ लोगों की ज़िम्मेदारी किसी बंदे को सौंपता है, चाहे गिनती में वे कम हों या अधिक। क़यामत के दिन ईश्वर ही उससे उन लोगों के बारे में हिसाब लेगा कि उसने उनके साथ ईश्वर के आदेशानुसार व्यवहार किया या उसकी अनदेखी की। इतना ही नहीं, ईश्वर उससे उसके घरवालों के बारे में भी हिसाब लेगा।”
***
अम् बिन हुरैस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुम अपने दास से काम लेने में जितना नम्र (humble) व्यवहार करोगे, उसका प्रतिफल क़यामत के दिन आपके पलड़े यानी खाते में डाल जाएगा।”
***
अबू मूसा अशअरी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुम लोग मरीज़ की सेवा करो, भूखे को खाना खिलाओ और क़ैदियों की रिहाई के लिए प्रयास करो।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुममें सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वह है, जो अपने परिवार वालों के साथ अच्छा व्यवहार करे और मैं अपने घरवालों के लिए सबसे अच्छा हूँ।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि एक व्यक्ति ने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से सवाल किया— “कौन-सा इस्लाम बढ़िया है यानी इस्लाम में कौन-सा कार्य सर्वश्रेष्ठ है?” आपने बताया— “तुम लोगों को खाना खिलाओ और सलाम करो; जो आपसे परिचित हैं, उन्हें भी और जो अपरिचित हैं, उन्हें भी।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क़यामत के दिन ईश्वर कहेगा, ‘ऐ आदम की संतान! मैं बीमार हुआ तो तुमने मेरा हाल-चाल न पूछा।’ तब इंसान कहेगा, ‘ऐ मेरे मालिक! मैं क्यों आपका हाल-चाल न पूछता, जबकि आप तो पूरी दुनिया के मालिक हैं।’ फिर ईश्वर कहेगा, ‘क्या तुझे नहीं मालूम हुआ कि मेरा फलाँ बंदा बीमार था, लेकिन तुमने उसकी तबीयत के बारे में जानना गँवारा न समझा। अगर तुम उसका हाल-चाल जानने जाते तो मुझे उसके पास आते।’ ” तात्पर्य यह है कि बीमार का हाल-चाल पूछने से ईश्वर प्रसन्न होता है।
***
अबू हुरैरा का कहना है कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ऐ मुसलमान महिलाओ! कोई भी महिला अपनी पड़ोसन के लिए उपहार को कम या छोटा न समझे, चाहे वह बकरी के खुर ही क्यों न हों।”
***
अनस कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुम अपने भाई की सहायता करो, चाहे वह अत्याचारी हो या उस पर अत्याचार किया गया।” तभी एक व्यक्ति बोला— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! मैं, जिस पर अत्याचार किया गया हो, उसकी सहायता कर सकता हूँ, लेकिन अगर वह ज़ालिम हो तो मैं उसकी सहायता क्यों करूँ?” आपने कहा— “तुम उसे ज़्यादती करने से रोको, यही तुम्हारी तरफ़ से उसकी सहायता होगी।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि हज्जतुल विदा16 के मौक़े पर पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ऐ मुसलमानो! सुनो, ईश्वर ने तुम पर तुम्हारा ख़ून, तुम्हारा माल और तुम्हारी इज़्ज़त वर्जित कर दी है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर के आदेशानुसार एक मुसलमान पर दूसरे मुसलमान का ख़ून यानी क़त्ल करना, माल हड़पना और इज़्ज़त बरबाद करना वर्जित है। तुम्हारे लिए आज का दिन आदरणीय है, तुम्हारे इस शहर में, इस महीने में। क्या मैंने आपको ईश्वर का संदेश पहुँचा दिया?” लोगों ने कहा— “हाँ!” फिर आपने कहा— “ऐ ईश्वर! आप मेरे गवाह रहना। ऐ ईश्वर! मेरा गवाह रहना।” इसके बाद आपने कहा— “तुम्हारा बुरा हो, तुम कहीं मेरे बाद (मरणोपरांत) काफ़िर17 न हो जाना कि आपस में एक-दूसरे की गरदन काटने लगो यानी किसी के अधिकार का हनन करने लगो।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुम महिलाओं की सुंदरता के कारण उनसे विवाह का इरादा न करो, संभवतः उनकी सुंदरता ही उनकी तबाही का कारण बने और न ही उनकी संपन्नता से प्रभावित होकर उनसे विवाह की चाह करो। संभव है कि उनकी धन-संपत्ति का घमंड उन्हें उद्दंड बना दे, बल्कि तुम उनकी धार्मिकता के कारण उनसे विवाह करो, क्योंकि धार्मिक कुरूप दासी भी उनसे उत्तम है यानी अधार्मिक सुंदर एवं धनी महिला से कुरूप धार्मिक दासी उत्तम है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “सर्वाधिक निकृष्ट वलीमे की वह दावत है, जिसमें केवल अमीरों को आमंत्रित किया जाए और ग़रीबों को नज़रअंदाज़ किया जाए। जिस व्यक्ति ने दावत को स्वीकार न किया मानो उसने ईश्वर और उसके पैग़ंबर की अवज्ञा की।”
***
उक़बा बिन आमिर कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “सर्वोत्तम मेहर18 वह है, जिसमें आसानी हो।”
***
जरीर बिन अब्दुल्लाह बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से अजनबी महिला पर अचानक नज़र पड़ने के संदर्भ में पूछा गया तो आपने कहा— “तुम अपनी नज़र नीची कर लिया करो।”
***
अब्दुल्लाह बिन मसऊद का कहना है कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ऐ नौजवानो! तुममें जो भी कोई विवाह का सामर्थ्य रखता हो, उसे चाहिए कि वह विवाह कर ले, क्योंकि वह उपेक्षा से बचाती है और व्यभिचार (fornication) से भी बचाने वाली है; लेकिन जो सामर्थ्यहीन हो, उसके लिए आवश्यक है कि वह रोज़ा रखे। इसी में उसकी भलाई है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “विवाह हेतु महिला का चयन करने के लिए मुख्यतः चार प्रमुख आधार होते हैं— (1) धन-संपत्ति, (2) कुलीनता, (3) रूप-सौंदर्य और (4) दीन-ईमान। सर्वश्रेष्ठ चयन दीन-ईमान वाली महिला है।
***
सईद बिन आस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “किसी बाप की ओर से उसके बेटे के लिए सर्वश्रेष्ठ उपहार यह है कि वह उसे उचित संस्कार एवं शिष्टाचार की शिक्षा प्रदान करे।”
***
सुराक़ा बिन मालिक बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क्या मैं आपको यह न बताऊँ कि सबसे बढ़िया सदक़ा (दान) क्या है? तुम्हारी वह बेटी, जिसे विवाह के बाद फिर से तुम्हारी तरफ़ लौटा दिया गया हो और तुम्हारे अलावा उसके जीवन-निर्वाह का कोई अन्य सहारा न हो।”
***
आयशा बताती हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के पास एक बच्चा लाया गया। आपने उसे बहुत प्यार किया, फिर कहा— “ये बच्चे आदमी की बुज़दिली और कंजूसी का कारण बनते हैं और ये ख़ुदा के फूल हैं।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “धिक्कार है ऐसे मर्दों पर, जो महिलाओं की तरह बनें-ठनें और धिक्कार है ऐसी महिलाओं पर, जो मर्दों की तरह रूप-स्वरूप सँवारें।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुम लोग ईर्ष्या-द्वेष से बचो, क्योंकि ईर्ष्या नेकियों को इस तरह नष्ट कर देती है, जैसे आग लकड़ियों को जला देती है।”
***
अबू अय्यूब अंसारी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तीन दिन से ज़्यादा अगर भाई-भाई आपस में संबंध-विच्छेद रखें और आमने-सामने होने पर एक-दूसरे से मुँह फेर लें, ऐसा उनके लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। हाँ, उन दोनों में बेहतर वह है, जो सलाम करने में पहल करे।”
***
अबू दरदा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क़यामत के दिन मोमिन के तराज़ू में सबसे ज़्यादा वज़नी यानी भारी चीज़ अच्छा व्यवहार होगा। ईश्वर ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल पसंद नहीं करता, जो निर्लज्ज (immodest) बातें करे और अपशब्द बोले।”
***
अबू सईद बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “सच्चा और ईमानदार व्यापारी क़यामत के दिन पैग़ंबरों, सत्यनिष्ठों और शहीदों का साथी होगा।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “परिश्रम करके कमाना सबसे बढ़िया कमाई है। शर्त यह है कि काम नेकदिली से किया जाए।”
***
अबू मूसा अशअरी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “एक मोमिन (मुसलमान) दूसरे मोमिन के लिए इमारत की तरह है, जिसका एक भाग दूसरे भाग को शक्ति प्रदान करता है।” फिर आपने अपने एक हाथ की उँगलियों को दूसरे हाथ की उँगलियों में मिलाकर दिखाया।
***
मुआज़ बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को उन्होंने यह कहते हुए सुना— “जीवन में उपयोग में आने वाली चीज़ों का संचयन (storage) करने वाला व्यक्ति अत्यंत निकृष्ट (arrant) प्राणी है। अगर ईश्वर उनके दाम घटा दे तो उसे तकलीफ़ पहुँचती है, लेकिन अगर उन चीज़ों के दाम बढ़ जाएँ तो वह बहुत ख़ुश हो जाता है।”
***
नोमान बिन बशीर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “इस्लाम पर ईमान लाने वाले आपस में दया, प्रेम और सहानुभूति की दृष्टि से एक शरीर की तरह हैं, जब शरीर के किसी अंग को कष्ट पहुँचता है तो पीड़ा पूरे शरीर को सहन करनी पड़ती है, आदमी की नींद उड़ जाती है और वह तापग्रस्त हो जाता है।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “एक मुसलमान का कर्तव्य यह है कि वह अपने सरदार की बात को ध्यानपूर्वक सुने और उसकी आज्ञा का पालन करे, चाहे वह बात उसकी प्रकृति के अनुकूल हो या न हो। हाँ, अगर वह अपराध करने का आदेश दे तो उस पर बिल्कुल भी अमल न करे।”
***
उक़बा बिन आमिर बताते हैं कि मैंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को यह कहते हुए सुना— “मुसलमान-मुसलमान आपस में भाई हैं। एक मुसलमान जब अपने भाई को कोई चीज़ बेचे और अगर उसमें कोई कमी हो तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह ख़रीदार भाई को सच्चाई बता दे।”
***
मिक़दाम बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “परिश्रम करके कमाई गई जीविका सर्वोत्तम है। ईश्वर के पैग़ंबर ! हज़रत दाऊद अपने परिश्रम की कमाई खाते थे।”
***
सुहैल बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद एक ऊँट के नज़दीक से गुज़रे। उसकी पीठ उसके पेट से चिपकी हुई थी। आपने कहा— “इन बेज़ुबान प्राणियों के बारे में ईश्वर से डरो। उनकी सामर्थ्य के अनुसार उन पर सवारी करो और उन्हें अच्छी हालत में छोड़ दो।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुम शक और वहम से बचो, क्योंकि शक हमेशा झूठी धारणा होती है। दूसरों को जानने के लिए कुरेदने की कोशिश मत करो और ताक में न रहो। किसी के द्वारा कही हुई बात को बढ़ा-चढ़ाकर मत बोलो। आपस में बैर-द्वेष न रखो। एक-दूसरे की बात का खंडन न करो। आपस में भाईचारा बनाकर ईश्वर के नेक बंदे बन जाओ।”
***
मामरबताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो व्यापारी दाम बढ़ाने के उद्देश्य से जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं का संचयन करके किल्लत पैदा करे, वह गुनाहगार है।”
***
राफ़े के कथनानुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से पूछा गया— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! सर्वोत्तम कमाई (आमदनी) कौन-सी है?” आपने कहा— “आदमी का अपने हाथों से परिश्रम करके कमाना और ईमानदारी से व्यापार करना।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “भविष्य में ऐसा समय आने वाला है, जब इंसान हलाल और हराम की तमीज़ भूल जाएगा यानी धन कमाना उसका उद्देश्य होगा। इस बात से उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा कि कमाई हलाल है या हराम।”
***
वासिला बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “किसी आदमी के लिए उचित नहीं कि वह चीज़ को बेचने से पहले उसमें मौजूद कमी या खोट को न बताए और विक्रेता के लिए अनिवार्य है कि वह वस्तु के जिस दोष से अवगत हो, उसे ग्राहक को अवश्य बताए।
***
उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं का मुनाफ़ाख़ोरी के उद्देश्य से संचयन न करने वाला व्यापारी नेक कमाई करता है और किल्लत पैदा करने वाला व्यापारी दुष्ट होता है।”
***
जाबिर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर उस व्यक्ति पर कृपादृष्टि करता है, जो क्रय-विक्रय और क़र्ज़ की उगाही के समय नरम व्यवहार करता है।”
***
अनस के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो व्यक्ति अपने उत्तराधिकारी की संपत्ति को व्यर्थ गँवाएगा यानी नुक़सान पहुँचाएगा, ईश्वर क़यामत के दिन उसे स्वर्ग के उत्तराधिकार से वंचित कर देगा।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर की राह में बलिदान देने वाले का प्रत्येक गुनाह माफ़ कर दिया जाएगा, लेकिन क़र्ज़ की कोई माफ़ी नहीं होगी।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “मज़दूर की मज़दूरी उसका पसीना सूखने से पहले अदा कर देनी चाहिए।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “किसी की अमानत को ज्यों-का-त्यों उसे लौटा दो। अगर कोई आपके साथ धोखाधड़ी करे, तब भी तुम उसके साथ धोखाधड़ी न करो।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “एक व्यक्ति लोगों को क़र्ज़ देता था। क़र्ज़ की उगाही के समय वह अपने कर्मचारियों को निर्देश देता कि जब तुम किसी निर्धन के पास जाओ तो धैर्य से काम लेना। संभव है कि ईश्वर हमें भी माफ़ कर दे।” आपने कहा— “जब वह व्यक्ति ईश्वर के सामने पहुँचा तो ईश्वर ने उसके साथ माफ़ी का रुख़ अपनाया।”
***
अली बिन तालिब बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “तुम असहाय की आह से बचो, क्योंकि वह ईश्वर से अपना हक़ माँगता है और ईश्वर किसी हक़दार को उसके हक़ से वंचित नहीं रखता।”
***
अनस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “कोई मुसलमान फ़सल उगाए या फलदार पेड़ लगाए, फिर उसकी फ़सल या फल में से कोई इंसान, पक्षी या जानवर खाए तो उसके समान पुण्य प्राप्त होगा।”
***
नोमान बिन बशीर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “हलाल और हराम में अंतर सर्वविदित रूप से स्पष्ट है और इन दोनों के बीच कुछ चीज़ें संदेहात्मक हैं। जो कोई इन संदेहात्मक कार्यों से बचने का प्रयास करेगा, वह प्रकटात्मक पापकर्मों से अवश्य ही बचने का प्रयास करेगा और जो कोई संदेहात्मक कर्म करने का साहस दिखाएगा, उसके प्रति अंदेशा है कि वह अवश्य ही प्रकटात्मक पापकर्मों में संलिप्त हो जाएगा और पाप की स्थिति ईश्वर द्वारा वर्जित चरागाह की तरह है। जो जानवर वर्जित चरागाह की सीमारेखा पर चरता है, अंदेशा है कि वह उसकी सीमारेखा का उल्लंघन भी कर जाएगा।”
***
औस बिन शुरहबील बताते हैं कि उन्होंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को यह कहते हुए सुना— “जो व्यक्ति किसी की ज़्यादती में उसका साथी बने और उसे पता हो कि मेरा साथी ज़्यादती कर रहा है तो ऐसा व्यक्ति इस्लाम से खारिज (बाहर) समझो।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “कोई व्यक्ति किसी से कुछ उधार इस नीयत से ले कि उसे यह उधार वापस चुकता करना है तो ईश्वर उधार की अदायगी में उसकी सहायता करेगा, लेकिन अगर कोई किसी से उधार वापस न लौटाने की नीयत से ले तो ईश्वर उसके माल को उसके लिए तबाह और बरबाद कर देगा।”
***
जाबिर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब कोई आपसे किसी संदर्भ में कोई राज़ की बात कहे और आप उसकी बात को बड़े ध्यान से सुनें तो उसकी बात आपके लिए अमानत की तरह है।”
***
अबू ज़र बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब कभी किसी को ग़ुस्सा आए और उस समय अगर वह खड़ा हो तो उसे चाहिए कि वह बैठ जाए, अगर फिर भी ग़ुस्सा शांत न हो तो लेट जाए।”
***
अतिया सअदी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ग़ुस्सा शैतान की तरह है और शैतान को आग से पैदा किया गया है। आग को पानी से बुझाया जाता है, इसलिए जब किसी को ग़ुस्सा आए तो उसे चाहिए कि वह वज़ू कर ले।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “अत्याचारी का अत्याचार क़यामत के दिन अँधेरे की हालत में प्रकट होगा।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस किसी ने घमंड में आकर अपने कपड़े को ज़मीन पर घसीटा तो क़यामत के दिन ईश्वर उसे देखना भी पसंद नहीं करेगा। हज़रत अबू बक्र बताते हैं कि मेरा तहमद (लुंगी) नीचे लटक जाता, हालाँकि मैं उसे सँभालने की बहुत कोशिश करता। पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— ‘तुम वैसे नहीं हो, जो घमंड के कारण ऐसा करते हैं।’ ”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब तुम तीन लोग हों तो एक को नज़रअंदाज़ करके दो लोग आपस में कोई गुप्त वार्तालाप न करो, क्योंकि ऐसा करने से तीसरा दुखी होगा।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को उठाकर उसकी जगह पर न बैठे, बल्कि तुम लोग कोई ख़ाली जगह करके बैठने की गुंजाइश पैदा करो।”
***
अम्र बिन शुएब बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “यह उचित नहीं कि कोई व्यक्ति दो लोगों को अलग करके बीच में बैठ जाए। हाँ, अगर उसने उनसे इजाज़त ले ली हो तो अलग बात है।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “रिश्वत लेने और देने वाले दोनों पर ईश्वर का धिक्कार है।”
***
अम्र बिन अबसा के कथनानुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद की पैग़ंबरी के आरंभिक समय में मैं उनसे मक्का में मिल। मैंने सवाल किया— “आप क्या हैं?” आपने कहा— “मैं पैग़ंबर हूँ।” मैंने फिर पूछा— “पैग़ंबर क्या होता है?” आपने बताया— “मुझे ईश्वर ने पैग़ंबर बनाकर भेजा है।” मैंने एक बार फिर पूछा— “ईश्वर ने आपको किस उद्देश्य से भेजा है?” आपने बताया— “ईश्वर ने मुझे लोगों के साथ भलाई करने और मूर्तिपूजा का खंडन करने के लिए भेजा है और इस उद्देश्य से कि ईश्वर की एकल सत्ता को स्वीकार किया जाए और उसके साथ किसी और को भागीदार न बनाया जाए।”
***
अनस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “एक मोमिन के स्वभाव में इन तीन बातों का होना आवश्यक है। जब वह क्रोधित हो तो उसका क्रोध उसे असत्य की ओर न ले जाए और जब वह ख़ुश हो तो उसकी ख़ुशी उसे सत्य के दायरे से बाहर न ले जाए और अगर वह शक्तिशाली हो तो उसका प्रयोग वह उस चीज़ को हथियाने में न करे, जो उसकी न हो।”
***
अनस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ग़ीबत करने का प्रायश्चित्त यह है कि तुम उस व्यक्ति के लिए मुक्ति की प्रार्थना करो, जिसकी तुमने ग़ीबत की है। तुम ऐसे प्रार्थना करो कि ऐ ईश्वर! आप मुझे और उसे माफ़ कर दें।”
***
अबू सईद खुदरी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस किसी ने बुराई को देखा, फिर उसे दूर कर दिया यानी मिटा दिया तो वह ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गया और जिसमें ऐसा करने की सामर्थ्य न हो तो वह बुराई को बुरा कहने की हिम्मत जुटाकर सुधार की कोशिश करे तो वह भी अपनी ज़िम्मेदारी से भारमुक्त हो गया और अगर कोई बोलकर भी कहने का सामर्थ्य न रखता हो तो वह दिल से बुराई को बुरा समझे, उसके दूर होने की प्रार्थना करे तो भी वह अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गया, लेकिन यह ईमान की सबसे कमज़ोर हालत है।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास क़ुरआन की एक आयत (इदफ़अ बिल्लाति हिया अहसन) के बारे में बताते हैं— “जब कोई क्रोध के समय और कठिन परिस्थितियों में धैर्य से काम लेता है तो ईश्वर उसकी सहायता करता है और उसे अपना संरक्षण प्रदान करते हैं। ऐसे में उसके दुश्मन भी उसके धैर्य के आगे नतमस्तक हो जाते हैं मानो वे उसके स्वजन (kinsfolk) हों।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर परिश्रम करके जीविका का उपार्जन करने मोमिन को पसंद करता है।”
***
मअकल बिन यसार बताते हैं कि मैंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को यह कहते हुए सुना— “जिसने मुसलमानों का सरपरस्त बनना स्वीकार किया, फिर उनके साथ न्याय और सद्व्यवहार किया और ऐसा प्रयास न किया, जैसा स्वयं के लिए करता है तो ऐसे व्यक्ति को ईश्वर औंधे मुँह नरक में गिराएगा।”
***
आयशा बताती हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद दूसरों को वही काम करने का आदेश देते थे, जिसे वे स्वयं भी कर सकते थे।
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि एक देहाती ने मस्जिद में पेशाब कर दिया। इस पर लोग उसकी पिटाई करने को तत्पर हो गए। तब पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “इसे छोड़ दो और पेशाब वाली जगह पर एक डोल पानी बहा दो। तुम लोग आसानी पैदा करने वाले बनो, न कि कठिनाई पैदा करने वाले।”
***
अनस बताते हैं कि मैं पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के साथ चल रहा था। आपने मोटे किनारे वाली नजरान की बनी हुई एक चादर ओढ़ रखी थी। उस समय एक देहाती आपके पास आया और आपकी चादर को ज़ोर से खींचा। मैंने देखा ज़ोर से चादर खींचने के कारण आपकी गरदन पर निशान उभर आए। फिर वह कहने लगा— “ऐ मुहम्मद! ईश्वर का दिया तुम्हारे पास जो माल है, उसमें से कुछ मुझे भी दे दो।” आप उसकी तरफ़ देखकर मुस्कराए। फिर आपने उसे माल देने का आदेश दिया।
***
आयशा बताती हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद अपने जूतों को टाँक लेते थे। अपने कपड़े सी लेते थे। आप अपने घर में वे सभी काम करते थे, जो कोई भी आदमी अपने घर में करता है। आप इंसानों में एक साधारण इंसान की तरह थे। आप अपनी बकरी से दूध दुहते और अपने दूसरे काम ख़ुद करते।”
***
जाबिर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से जब भी किसी ने कोई चीज़ माँगी तो आपने कभी इनकार नहीं किया।”
***
आयशा बताती हैं कि मैंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को कभी इस तरह खिलखिलाकर हँसते नहीं देखा कि आपके तालू दिखाई दें, आप सिर्फ़ मुस्करा दिया करते थे।
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कभी किसी खाने में दोष नहीं निकाला। अगर पसंद आया तो खा लिया, वरना छोड़ दिया।
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को तकिया लगाकर खाते हुए कभी किसी ने नहीं देखा और न कभी यह देखा कि दो आदमी आपके पीछे-पीछे चल रहे हों।
***
सायिब बताते हैं कि उन्होंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से कहा कि अज्ञानता के दौर में यानी पैग़ंबरी से पहले आप मेरे व्यापार के भागी थे। आप सबसे बढ़िया भागीदार थे। आप न कभी मुझे धोखा देते और न कभी मेरे साथ झगड़ा करते।
***
यअला कहते हैं कि मैंने उम्मे-सलमा से पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के शुद्ध उच्चारण के साथ क़ुरआन पढ़ने के बारे में जानने के लिए पूछा। उन्होंने बताया— “आपका क़ुरआन पढ़ने में उच्चारण इतना स्पष्ट होता कि एक-एक शब्द साफ़-साफ़ समझ आता था।”
***
अब्दुल्लाह बिन मसऊद कहते हैं कि बदर के समय तीन लोगों के हिस्से में सवारी के लिए एक ऊँट होता था। अबू लबाबा और अली बिन अभी तालिब पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के साथ थे। जब आपके पैदल चलने की बारी आती तो दोनों कहते कि आप सवार हो जाइए, हम आपके बदले चलेंगे। तब आप कहते— “न तो आप दोनों मुझसे अधिक ताक़तवर (हृष्ट-पुष्ट) हो और न ही पुण्य-प्राप्ति के मामले में मैं अनिच्छुक (unwilling) हूँ।”
***
अब्दुल्लाह बिन मसऊद बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “मेरे साथियों में से कोई भी साथी दूसरे की शिकायत न करे। मैं चाहता हूँ कि जब मैं आप लोगों के पास आऊँ तो मेरा दिल आपकी तरफ़ से बिल्कुल साफ़ हो।”
***
आयशा बताती हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “दातुन करने से मुँह की सफ़ाई होती है और इसमें ईश्वर की रज़ामंदी है।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने अब्दुल क़ैस क़बीले के सरदार से कहा— “तुममें दो गुण ऐसे हैं, जो ईश्वर को बहुत पसंद हैं। वे हैं— गंभीरता और सहनशीलता।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने जानवरों आदि को आपस में लड़ाने से मना किया है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईमान के बिना कोई भी स्वर्ग में नहीं जा सकता है और ईमान के लिए आपसी प्रेमभाव का होना अनिवार्य है। क्या मैं आपको ऐसा मूलमंत्र न बता दूँ, जिसके द्वारा आप एक-दूसरे से प्रेम करने लगें और वह है तुम एक-दूसरे को सलाम किया करो यानी सलाम एक ऐसा मंत्र है, जिसे अपनाकर विरोधी को भी जीता जा सकता है।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने निंदा और चुग़ली करने व सुनने से मना किया है।
***
ज़ैद बिन अकरम बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब कोई आदमी अपने भाई से वचन करे और उसे निभाने की नीयत भी रखे, लेकिन किसी भी कारणवश अगर वह वचन-पूर्ति न कर सके तो उस पर कोई गुनाह नहीं।”
***
ज़ुबैर बिन मुत्’इम बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “वह व्यक्ति हममें से नहीं यानी ईमान वाला नहीं, जो पक्षपाती हो और वह भी हममें से नहीं, जो पक्षपात के लिए झगड़ा करे और वह ईमान वाला बिल्कुल भी नहीं, जो पक्षपात करते हुए जान गँवाए।”
***
ख़ुरैम बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने सुबह यानी फ़ज्र की नमाज़ अदा की। नमाज़ पढ़ने के बाद आप खड़े हो गए और कहा— “झूठी गवाही देना यानी असत्य का गवाह बनना ईश्वर से शिर्क19 करने के बराबर है।” यह कथन आपने तीन बार दोहराया। इसके बाद आपने यह आयत पढ़ी, जिसका अनुवाद इस प्रकार है— “तुम मूर्तिपूजा की भ्रष्टता (defilement) से बचो और झूठ कहने से बचो। ईश्वर के लिए एक हो जाओ और ईश्वर के साथ किसी को साझीदार न बनाओ यानी शिर्क न करो।”
***
एक व्यक्ति ने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से पूछा— “ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! क्या अपनी क़ौम से प्रेम करना पक्षपात कहलाता है?” आपने कहा— “नहीं, पक्षपात तो यह है कि आदमी अपनी क़ौम के अत्याचारी होने पर पक्षपात करते हुए सहायता करे।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क्या तुम्हें ज्ञात है कि चुग़ली क्या होती है?” लोगों ने कहा— “ईश्वर और उसके पैग़ंबर बेहतर जानते हैं।” तब आपने कहा— “यह कि अपने भाई के बारे में ऐसी बात बोलो, जो उसे अच्छी न लगे।” आपसे पूछा गया कि अगर मेरे भाई में वह बात मौजूद हो, जो मैं कह रहा हूँ?” आपने बताया— “अगर वह बात उसमें मौजूद हो, जिसकी आप चर्चा कर रहे हों तो यह चुग़ली है और अगर न हो तो यह मिथ्यारोप (falsehood) है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “क़यामत के दिन तुम उस सबसे निकृष्ट व्यक्ति को देखोगे, जो दोमुँहे स्वभाव का था यानी बहरूपिया था। वह कुछ लोगों के साथ एक प्रकार का व्यवहार करता था और कुछ के साथ अन्य प्रकार का।”
***
हुज़ैफ़ा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “चुग़लख़ोर स्वर्ग में कभी नहीं जाएगा।”
***
अब्दुल्लाह बताते हैं कि झूठ बोलना न तो संजीदगी में उचित है और न ही मज़ाक़ में। और यह भी उचित नहीं कि तुममें से कोई अपने बच्चों के साथ वादा करे और फिर उसे पूरा न करे।
***
अब्दुल्लाह बिन उमर और बिन आस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “चार बातें ऐसी हैं, जिसमें वह पाई जाएँ तो वह अव्वल दर्जे का मक्कार होता है। अगर किसी में उनमें से एक भी मौजूद हो और वह उसे छोड़ना भी चाहे तो भी वह छोड़ नहीं पाता। जब उसे कोई अमानत सौंपी जाए तो वह धोखाधड़ी करेगा। जब भी बोलेगा तो झूठ बोलेगा। हमेशा वचन तोड़ेगा और जब वह किसी का विरोध करेगा तो अपशब्द बोलेगा यानी बदतमीज़ी करेगा।”
***
अब्दुल्लाह बिन अब्बास बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “अपने भाई से मत झगड़ो और न ही हँसी-ठट्ठा करो और ऐसा भी मत करो कि तुम वादा करो और फिर अपने वादे से मुकर जाओ।”
***
अब्दुल्लाह बिन मसऊद बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जिस व्यक्ति ने सच बात के विरुद्ध अपने लोगों (क़ौम) की सहायता की, उसका उदाहरण ऐसे ऊँट की तरह है, जो कुएँ में गिर रहा हो और वह उसकी पूँछ पकड़कर उससे लटक जाए।”
***
बहज़ बिन हकीम कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ऐसे व्यक्ति का अनिष्ट हो, जो इस तरह झूठ बोले कि लोग उसकी बात सुनकर हँसे। यह उसके लिए अनिष्टकारी (malefic) है, यह उसके लिए अनिष्टकारी है।”
***
वासिला बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “अपने भाई के संकटग्रस्त होने पर ख़ुश न हों। कहीं ऐसा न हो कि ईश्वर उस पर अपनी कृपा कर दे और आपको दंडस्वरूप संकटग्रस्त कर दे।”
***
सुहैल बिन सअद बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जो कोई मुझे इसके बारे में विश्वास दिलाए, जो दोनों जबड़ों के बीच (जीभ) है और जो जाँघों के बीच (गुप्तांग) है तो मैं उसे स्वर्ग की ख़ुशख़बरी देता हूँ यानी स्वर्ग का विश्वास दिलाता हूँ।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर के अनुसार पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद कहा— “अगर किसी सुनसान जगह पर तीन व्यक्ति हों तो उन्हें चाहिए कि वे आपस में से किसी एक को अपना सरदार नियुक्त कर लें।”
***
अबू सईद खुदरी कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब तीन व्यक्ति यात्रा पर निकलें तो उन्हें चाहिए कि वे अपने बीच से किसी एक को अपना अगुआ (सरदार) बना लें।”
***
अनस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “वह व्यक्ति कभी मोमिन नहीं हो सकता, जो अपने भाई के लिए वही पसंद न करे, जो स्वयं के लिए पसंद करता है।”
***
नोमान बिन बशीर बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “दुआ ही इबादत है।”
***
अबू हुरैरा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर कहता है कि मैं उस समय अपने बंदे के साथ होता हूँ, जब वह मुझे याद करता है और जब मेरे लिए उसके दोनों होंठ हिलते हैं।”
***
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ बताते हैं कि उन्होंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद से कहा— “मुझे ऐसी कोई दुआ बताइए, जो मैं अपनी नमाज़ में पढ़ा करूँ।” आपने कहा— “कहो, ऐ ईश्वर! मैंने अपनी जान पर बहुत ज़ुल्म किया है और सिवा आपके कोई गुनाहों को माफ़ करने वाला नहीं। इसलिए आप मुझ पर दया कीजिए और मुझे माफ़ कर दीजिए। निःसंदेह आप माफ़ करने वाले और दयालु हैं।”
***
ज़ैद बिन अकरम बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद कहा करते थे— “ऐ ईश्वर! मैं ऐसे ज्ञान से आपकी सुरक्षा चाहता हूँ, जो लाभप्रद न हो और ऐसे दिल से, जिसमें आपका डर न हो यानी आपकी अवज्ञा का डर न हो और ऐसी इच्छाओं से जो अनुचित हों और ऐसी दुआ से, जो आपके द्वारा स्वीकृत न की जाए।”
***
अब्दुल्लाह बिन उमर और बिन अल-आस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने दुआ में कहा— “ऐ ईश्वर! दिलों को फेरने वाले यानी मनःस्थिति बदलने वाले, हमारे दिलों को अपना आज्ञाकारी बना दे।”
***
मुआज़ बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा— “ऐ मुआज़ ! ईश्वर की सौगंध, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।” इसके बाद आपने कहा— “मैं तुम्हें परामर्श देता हूँ कि प्रत्येक नमाज़ के बाद यह दुआ करना न भूलना— ऐ ईश्वर! आप मेरी सहायता कीजिए कि मैं आपको याद करूँ, आपका शुक्रगुज़ार रहूँ और प्रेमपूर्वक आपकी इबादत करूँ।”
***
मालिक अपने पिता के कथन के अनुसार कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का तरीक़ा था कि जब कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता तो आप उसे नमाज़ पढ़ना सिखाते। फिर आप उसे शिक्षित करते कि इस तरह दुआ करो— “ऐ ईश्वर! मुझे माफ़ कर दो और मुझ पर कृपा करो और मुझे सच के रास्ते पर चलने की हिदायत अता करो और मुझे शांति व रोज़ी प्रदान करो।”
***
अबू हुरैरा कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने दुआ की— “ऐ ईश्वर! मैंने आपसे वादा लिया है और आप उसे अवश्य ही निभाएँगे। ऐ ईश्वर! मैं तो एक इंसान हूँ, मैंने अगर किसी मुसलमान को सताया हो या उसे कुछ ग़लत बोला हो या उसे फटकारा हो या उसे कभी चाबुक से मारा हो तो मेरे इस कर्म पर उसे क़यामत के दिन दया, शुद्धता और अपनी निकटता प्रदान करना।”
***
अनस बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद यह कहा करते थे— “ऐ ईश्वर! मैं आपसे आपकी शरण माँगता हूँ— परेशानी और दुख से, बेबसी और आलस्य से, क़र्ज़ के बोझ से और ऐसी हालत से कि दूसरे लोग मुझ पर प्रभावी हो जाएँ।”
***
आयशा बताती हैं कि मैंने सुना कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद अपनी कुछ नमाज़ों में इस तरह दुआ करते— “ऐ ईश्वर! मुझसे आसान हिसाब लेना।” मैंने कहा— ऐ ईश्वर के पैग़ंबर! आसान हिसाब से क्या अभिप्राय है?” आपने कहा— “वह यह है कि ईश्वर बंदे के कर्मों के खाते को देखे और फिर उसे अनदेखा कर दे यानी माफ़ कर दे। ऐ आयशा! जिससे पूरा हिसाब लिया जाएगा, समझो कि उसकी शामत है।”
***
अबू सईद खुदरी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “जब भी कोई मोमिन ऐसी दुआ माँगता है जिसमें गुनाह या संबंध-विच्छेद से संबंधित कोई बात न हो तो ईश्वर अवश्य ही उसे तीन में से कोई एक प्रदान कर देता है— या तो दुनिया में ही उसकी दुआ पूरी कर दी जाती है या उसे परलोक के लिए संचित कर दिया जाता है या फिर उसकी तरह उससे कोई दूसरी मुसीबत को दूर कर दिया जाता है।” लोगों ने कहा कि तब तो हम बहुत अधिक दुआएँ माँगा करेंगे। आपने कहा— “ईश्वर भी बहुत देने वाला दाता है।”
***
अबू बक्र बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “परेशानहाल आदमी की दुआ ऐसे है— “ऐ ईश्वर! मैं आपकी कृपादृष्टि का इच्छुक हूँ, पल भर के लिए भी मुझे मेरी इच्छाओं के अधीन न करना, आप मेरी हर उलझन को सुलझाने वाले हैं। आपके सिवा कोई पूजनीय नहीं।”
***
अम्र बिन अंबसा बताते हैं कि उन्होंने पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को यह कहते हुए सुना— “ईश्वर अपने बंदे के सबसे ज़्यादा क़रीब रात के अंतिम पहर में होता है। अगर आपसे बन पड़े तो तुम रात के इस पहर में ईश्वर की स्तुति करो।”
***
अबू मूसा अशअरी कहते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर अपनी कृपा का हाथ रात के समय फैलाता है, ताकि दिन में बुराई करने वालों की तौबा (प्रायश्चित्त) स्वीकार करे और ईश्वर अपना हाथ दिन में इसलिए फैलाता है, ताकि रात में गुनाह करने वालों की तौबा स्वीकार करे। ऐसा तब तक निरंतर जारी रहेगा, जब तक कि सूरज पश्चिम से उदय न हो जाए यानी क़यामत न आ जाए।”
***
अबू मूसा अशअरी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर का स्मरण करने वाले और स्मरण न करने वाले में वैसा ही अंतर है, जैसा कि जीवित और मृत प्राणी में होता है।”
***
पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने यह दुआ की— “ऐ ईश्वर! मैं जीवनभर सत्य पर दृढ़तापूर्वक स्थिर रहने का सामर्थ्य माँगता हूँ और मैं आपसे सन्मार्ग पर चलने की दृढ़ता माँगता हूँ और मैं आपके द्वारा उपलब्ध कराए गए उपहारों कि कृतज्ञता एवं आपकी सहृदयता से इबादत करने का सामर्थ्य माँगता हूँ और मैं आपसे हमेशा सच बोलने वाली जीभ और निर्मल हृदय की प्रार्थना करता हूँ।”
***
अबू उमामा बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद का तरीक़ा यह था कि जब दस्तरख़्वान उठाया लिया जाता तो आप यह दुआ करते— “स्तुति (प्रशंसा) पर केवल ईश्वर का हक़ है, जो सबसे उत्तम एवं कल्याणकारी है। ऐसी स्तुति, जो हम स्वयं करें; ऐसी स्तुति, जो कभी भी हमसे न छूटे और जिसके प्रति हम कभी भी बेपरवाह तथा निश्चिंत न हों, ऐ हमारे मालिक !”
***
सलमान फ़ारसी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “ईश्वर विनयशील एवं अत्यंत दयालु है। ईश्वर को इस बात से लज्जा आती है कि उसका बंदा अपने हाथ फैलाकर उससे कुछ माँगे तो वह कैसे उसके फैले हुए हाथों को ख़ाली लौटा दे।”
***
अब्दुल्लाह बिन मसऊद बताते हैं मानो मैं पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद को देख रहा हूँ। आप पैग़ंबरों में से एक पैग़ंबर का क़िस्सा सुना रहे हैं। उन्हें उनकी क़ौम ने इतना मारा कि उन्हें लहूलुहान कर दिया। वे अपने चेहरे से लहू पोंछ रहे हैं और यह दुआ कर रहे हैं— “ऐ मेरे ईश्वर! मेरी क़ौम को माफ़ कर दे, क्योंकि वे सत्य से परिचित नहीं हैं।”
***
तमीम दारी बताते हैं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने कहा— “दीन (इस्लाम) भलाई है, दीन भलाई है, दीन भलाई है।” हमने पूछा— “किसके लिए?” आपने बताया— “ईश्वर और उसके पैग़ंबर के लिए और उसकी किताब (क़ुरआन) के लिए और मुसलमान प्रबंधकों एवं शासकों के लिए तथा उनकी जनता के लिए।”