एक आदमी था, जिसने अपने घर के साथ-साथ अपनी सारी संपत्ति छोड़ दी। उसने अपनी कीमती फरारी भी बेच दी और पेड़ों, फूलों व जानवरों के करीब अकेले रहने के लिए जंगल में चला गया। उसका उद्देश्य प्रकृति में विलीन होकर आध्यात्मिकता प्राप्त करना था। हो सकता है कि वह अपने लक्ष्य तक पहुंच गया हो, लेकिन उसकी आध्यात्मिकता केवल व्यक्तिगत सांत्वना (solace) का मामला था और इस तरह इसकी पहुंच सीमित थी। यह व्यावहारिक आध्यात्मिकता (applied spirituality) नहीं थी अर्थात वह आध्यात्मिकता, जिसके माध्यम से दूसरों ने किसी के व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुभव से कुछ प्राप्त किया हो। व्यावहारिक रूप से आध्यात्मिक व्यक्ति के बीच एक बड़ा अंतर है, जो समाज के भीतर रहता है और अपने आध्यात्मिक अनुभव दूसरों के साथ साझा करता है और वह, जो एकांत में मर जाता है, बिना किसी को लाभ पहुंचाए।
आध्यात्मिकता सभी प्रकार के रचनात्मक गुणों (creative qualities) के विकास को बढ़ावा देती है और ऐसा करने से व्यक्ति एक संपूर्ण व्यक्ति बन जाता है। ऐसे गुणों से संपन्न व्यक्ति को समाज व देश पसंद करता है और उसकी ज़रूरत महसूस करता है। वह अपने आध्यात्मिक खज़ाने को ज़ाया कर देगा, अगर वह अपने समाज को छोड़कर शांति से अकेले रहने के लिए किसी जंगल में चला जाता है। बेशक यह आध्यात्मिकता की एक अभिव्यक्ति है, लेकिन एक बहुत ही छोटे रूप में और एक संन्यासी की तरह जीने में एक आध्यात्मिक व्यक्ति अपने इस उपहार का बहुत ही निम्न स्तर पर उपयोग करता है। वास्तव में जब एक बेहतर समाज की स्थापना की बात आती है, तो एक आध्यात्मिक व्यक्ति सबसे अधिक वांछनीय व्यक्ति होता है, जो एक बेहतर समाज और बेहतर इंसानों का संग्रह होता है। यही सच्ची आध्यात्मिकता है, जो किसी को एक बेहतर इंसान बनाती है।
एक सभ्य समाज का निर्माण करने और इसे सही दिशा में चलाने के लिए हमें पेशेवर रूप से प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता होती है। ऐसे प्रशिक्षित लोगों के बिना संगठित समाज का होना असंभव है। आध्यात्मिक व्यक्तियों की भी ऐसी ही आवश्यकता है, क्योंकि आध्यात्मिकता चरित्र और ईमानदारी, कर्तव्य-चेतना और मानसिक तैयारी के मामले में एक बेहतर तथा अधिक परिपक्व व्यक्ति बनाती है। इस प्रकार आध्यात्मिक व्यक्ति, जो मार्गदर्शन दे सकता है, वह एक उच्च प्रकृति का होता है और यही कारण है कि वह सही दिशा में सामाजिक अस्तित्व के इंजन को चलाने के लिए सबसे योग्य होता है।
ऐसी आध्यात्मिकता को ही हमने ‘व्यावहारिक’ आध्यात्मिकता कहा है। मूल अर्थ में आध्यात्मिकता एक व्यक्तिगत संपत्ति है, लेकिन विस्तृत अर्थों में इसके कई उपयोग हैं और जहां अध्यात्म एक निजी मामला है, वहां ‘व्यावहारिक’ आध्यात्मिकता उसका सार्वभौम (universal) रूप है।
यह केवल उन लोगों को ही नहीं, जो व्यावहारिक आध्यात्मिकता से फायदा उठाते हैं, बल्कि स्वयं आध्यात्मिक व्यक्ति को भी फायदा पहुचता है। जब ऐसा व्यक्ति अपने आध्यात्मिक प्रशिक्षण को दूसरों के साथ साझा करने के लिए खुद को समर्पित करता है, तो वह अपनी आध्यात्मिकता में एक नया आयाम जोड़ता है। अनुभव केवल समाज के भीतर ही प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा अनुभव आध्यात्मिकता में समझदारी को जोड़ता है। समझदारी के बिना अध्यात्म अधूरा है। अध्यात्म और समझदारी से एक श्रेष्ठ अवस्था का जन्म होता है। समझदारी के साथ आध्यात्मिकता ही सब कुछ है, यानी समझदारी के बिना आध्यात्मिकता कल्पना से थोड़ा बेहतर होती है।
आध्यात्मिकता एक आंतरिक गुण है, लेकिन इसे वास्तविक बनाने के लिए इसे व्यावहारिक बनाना होगा।
व्यावहारिक आध्यात्मिकता का अर्थ है, समाज में अध्यात्म को देने वाला बनकर रहना, जैसे गाय दूध देती है, जो शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, वैसे ही आध्यात्मिकता को व्यावहारिक बनाने की क्षमता रखने वाला लोगों के बौद्धिक स्वास्थ्य में सहायता कर सकता है।
व्यावहारिक आध्यात्मिकता क्या है? यदि आप शुभचिंतक के मूल्य को जान सकें और संपूर्ण मानव जाति के लिए एक शुभचिंतक के रूप में जीने का निर्णय लेते हैं, तो आप व्यावहारिक आध्यात्मिकता में जीते हैं। इसी तरह यदि आपको अपने पड़ोसियों के साथ कोई बुरा अनुभव हुआ, लेकिन अगर आप इसे सामान्य स्थिति मानकर उन पड़ोसियों का मुस्कान के साथ सामना करें, तो वह भी ‘व्यावहारिक’ आध्यात्मिकता का एक उदाहरण है। आध्यात्मिकता अगर नैतिक मूल्य है, तो व्यावहारिक आध्यात्मिकता समाज में इन मूल्यों का अभ्यास करना है।
व्यावहारिक आध्यात्मिकता देखने में देने का विषय है, लेकिन हर देने के साथ पाना भी है। यही प्रकृति का नियम है। इस नियम के अनुसार देने वाला केवल देने वाला नहीं होता, बल्कि वह भी उन लोगों से कई चीज़ों को पाने वाला होता है, जो उसकी उदारता का केंद्र रहे हैं, जैसे; प्रशंसा, सद्भावना, बेहतर संबंध और शांति।