ऐसा कहा जाता है कि विश्वास और अविश्वास को लेकर सारी बहस एक ही सवाल पर आकर टिक जाती है- क्या तर्क की जीत होती है? अविश्वासी प्रवृत्ति के लोग कहते हैं कि यदि ईश्वर होता, तो हमें संसार में सब जगह विरोधाभास क्यों दिखाई देता है? जब हम ब्रह्मांड का निरीक्षण करते हैं, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पूरे ब्रह्मांड में एक शानदार डिज़ाइन है। फिर भी मानव जगत में तस्वीर बिलकुल अलग है। यहां हम दुःख, पीड़ा और सभी प्रकार की बुराइयां देखते हैं। नास्तिकों के अनुसार, दो परिदृश्यों (scenarios): ब्रह्मांड और इंसानी दुनिया के बीच यह विरोधाभास दर्शाता है कि हमारी दुनिया अव्यवस्थित है। हालाँकि आंशिक रूप से दुनिया में डिज़ाइन प्रतीत होता है, लेकिन जब हम पूरे चित्र को देखते हैं, तो डिज़ाइन ग़ायब हो जाता है। यह इस तर्क को नकारता है कि यदि कोई डिज़ाइन है, तो एक डिज़ाइनर भी होना चाहिए।
हालाँकि इस विरोधाभास को तुलना के माध्यम से समझाया जा सकता है। जब हम दो ‘संसारों’ की तुलना करते हैं, तो हमें पता चलता है कि एक मूलभूत विरोधाभास है। मानव संसार की विशेषता है कि इसमें किसी भी प्रकार के प्रतिबंध नहीं हैं। मनुष्य को या तो अहिंसा के मार्ग पर चलने या युद्ध करने की पूरी स्वतंत्रता है। वह परमाणु ऊर्जा का उपयोग या तो रचनात्मक उद्देश्यों के लिए या परमाणु हथियारों के विकास के लिए कर सकता है। इस प्रकार की स्वतंत्रता अराजकता और संघर्ष को बढ़ावा देती है तथा यह संपूर्ण व्यवस्था को नष्ट करने की क्षमता रखती है। ब्रह्मांड का मामला इसके विपरीत है। इसकी हैरतअंगेज़ विशालता और अनगिनत भागों के बावजूद हम इसे पूरी तरह से व्यवस्थित पाते हैं। सूक्ष्म जगत (microcosm) से लेकर स्थूल जगत (macrocosm) तक संपूर्ण ब्रह्मांड कड़े अनुशासन के तहत अर्थात् प्राकृतिक नियमों के अनुसार कार्य करता है। नतीजतन इसका एक अत्यधिक अनुमानित चरित्र (predictable character) है। इसी अनुमानित चरित्र के कारण ही हम सटीकता के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास करने में सक्षम हुए हैं। मानव जगत में अनुमानित चरित्र की अनुपस्थिति सामाजिक विज्ञानों को भौतिक विज्ञानों जैसी सटीक न होने का कारण है। उदाहरण के लिए, सौरमंडल की केवल एक ही परिभाषा है, लेकिन राजनीति विज्ञान (political science) की लगभग एक दर्जन परिभाषाएँ हैं।
हमारी दुनिया और शेष ब्रह्मांड के बीच यह अंतर हमें इस विश्वास की ओर ले जाता है कि सृष्टिकर्ता द्वारा तैयार की गई योजना एक चीज़ और दूसरी के लिए भिन्न है, जबकि ब्रह्मांड के काम-काज को निर्धारित किया जा सकता है लेकिन मानव संसार के लिए निर्माता की योजना मनुष्य के लिए अलग है वह इसे पूरी तरह आज़ादी देती है। इस अंतर में बहुत समझदारी है। यदि हम भौतिक संसार का निरीक्षण करें तो हमें पता चलता है कि बौद्धिक विकास की प्रक्रिया इसमें अनुपस्थित है।
दूसरे शब्दों में, यह लाखों वर्षों से एक जैसा बना हुआ है, लेकिन मानव जगत में चुनौतियां निरंतर बनी रहती हैं और यह इस प्रकार का चुनौतीपूर्ण वातावरण है, जो प्रगति और विकास की ओर ले जाता है। चुनौतियों का अनुभव किए बिना कोई रचनात्मक सोच या बौद्धिक विकास नहीं हो सकता। जब हम भौतिक दुनिया का निरीक्षण करते हैं तो हम उसमें व्यवस्था पाते हैं, जबकि इंसानी दुनिया में अव्यवस्था प्रतीत होती है; लेकिन यह ‘विकार’ नकारात्मक नहीं, बल्कि सकारात्मक घटना है। मानव जगत में इस विकार की सकारात्मक व्याख्या चुनौती का सामना करने की प्रतिक्रिया है।
इस अंतर के कारण हमें इन क्षेत्रों का उचित मूल्यांकन करने के लिए दो अलग-अलग मापदंड लागू करने होंगे। ब्रह्मांड को नियतिवाद (determinism) के मापदंड से आँका जाना चाहिए, जबकि मानव जगत को स्वतंत्रता (freewill) के मापदंड से आँका जाना चाहिए। इसकी नियतात्मक प्रकृति के लिए धन्यवाद, जिससे भौतिक दुनिया को प्रौद्योगिकी बनाना संभव हुआ। नियतिवाद के बिना हम औद्योगिक विकास के लिए भौतिक संसार के संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम नहीं होते। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मानव जगत में मानवजाति को मिली स्वतंत्रता के कारण अनिवार्य रूप से कई समस्याएँ या चुनौतियाँ पैदा होती हैं और इन चुनौतियों का सामना करने में ही हम विकसित होते हैं और आगे बढ़ते हैं। इसके साथ ही अफ़सोस की बात है कि यह पूर्ण स्वतंत्रता बुराई को भी जन्म देती है।
बुराई की समस्या (problem of evil) भौतिक संसार का विशेष हिस्सा नहीं है। यह मानव जगत की एक अनोखी घटना है। यह बुराई वह क़ीमत है, जो हमें उन सभी विकासों के लिए अनिवार्य रूप से चुकानी पड़ती है, जिसके परिणामस्वरूप हमें वह चीज़ मिलती है, जिसे गर्व से हम सभ्यता कहते हैं।