जीवन में सकारात्मक मानसिक विचारों से ही शांति का माहौल विकसित होता है। वहीं, मन में नकारात्मक विचार हिंसा को जन्म देते हैं। किसी सभ्य समाज में शांति स्वाभाविक स्थिति होती है, जबकि हिंसा से माहौल काफी उथल-पुथल रहता है। प्रकृति को भी शांति पंसद है। उसके ठीक विपरीत प्रकृति को हिंसा बिल्कुल पसंद नहीं है। जब किसी समाज में शांति का माहौल कायम रहता है, तो जीवन से जुड़ी सारी गतिविधियां खुद-ब-खुद सही तरीके से चलती रहती हैं। लेकिन, जैसे ही समाज में किसी प्रकार का उथल-पुथल मचता है, तो समाज में सामान्य जन-जीवन भी प्रभावित होने लगता है। यह नियम इंसानी जीवन के साथ पूरी कायनात पर भी लागू होते हैं।
एक विश्वासी की सबसे बड़ी खूबी है कि वह शांति का प्रशंसक होता है। तमाम परिस्थितियों से परे उसके दिलो दिमाग में एक विश्वास और शांति की इच्छा बड़ी ही गहराई के साथ जुड़ी हुई होती है। एक विश्वासी हमेशा चाहता है कि समाज में शांति का माहौल बना रहे और इसके लिए अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश भी करता है। वह किसी दूसरी चीज़ का नफा-नुकसान सह लेगा। मगर वह इस बात को कभी सह नहीं सकता, जिससे शांति भंग हो रही हो। इस दुनिया में हर सच्चे विश्वासी की अपनी यही ख्वाहिश रहती है कि वह अपनी ज़िंदगी ऐसे माहौल में जिये, जहां सिर्फ और सिर्फ शांति का माहौल हो। उथल-पुथल की स्थिति से नकारात्मक वातावरण का माहौल बनता है। यह किसी नेक इंसान के लिए किसी घृणा से कम नहीं है।
इस तरह शांति किसी विश्वासी के जीवन का अहम हिस्सा होता है। इस्लाम शांति के पक्षधर वाला धर्म है और शांति प्रकृति का एक सार्वभौमिक नियम है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ईश्वर को भी शांति का माहौल बेहद पसंद है। साथ ही ईश्वर किसी तरह की अशांति की स्थिति पैदा होने पर वह सिरे से खारिज कर देता है। शांति की तरफ ईश्वर का झुकाव ही किसी विश्वासी इंसान के लिए शांति से लगाव होने अपने आप में पर्याप्त है। एक सच्चा विश्वासी शायद ही कभी किसी सूरत में अशांत माहौल को बर्दाश्त कर पाएगा।
शांतिपूर्ण विचारों का नतीजा शांतिपूर्ण संकल्प होता है। शांति से भरपूर दिमाग एक और शांतिपूर्ण और खूबसूरत दुनिया को बनाने में काफी मदद करता है। अगर किसी समाज में शांति का माहौल है, तो स्वाभाविक तौर पर उस समाज में रहने वाले लोग भी शांत दिमाग वाले होंगे। इसलिए शांति तभी कायम रह सकती है, जब समाज में रहने वाले हर इंसान शांति प्रिय तरीके से रहने के लिए तैयार हो। शांति के माहौल में वे लोग ही रह सकते हैं, जिनमें बिना किसी लाग-लपेट के धैर्यूपर्वक रहने की क्षमता है। कहने का मतलब यह है कि हर इंसान अलग-अलग सोच के साथ पैदा होता है और हरेक किसी को अपने-अपने एजेंडे के अनुसार चलने की आज़ादी है। यही संसार का नियम भी है। यही वजह है कि समाज में एक जैसे सोच और विचार पैदा का संभव नहीं है।
ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि समाज में शांति कैसे बहाल किया जाए? इस सवाल का एकमात्र जवाब तीन अक्षर वाला एक जादुई शब्द है, वह है सब्र यानी धैर्य। सब्र किसी सभ्य और शांति-प्रिय समाज का प्रमुख कारक है। किसी शांति-प्रिय समाज के लिए समय-समय पर किसी प्रकार के टकराव की अनदेखी भी करनी पड़ती है। कभी उथल-पुथल का माहौल बनने की स्थिति में सहने की क्षमता और सकारात्मक सोच को बनाए रखने की भी ज़रूरत पड़ती है। साथ ही आपके भीतर किसी की भावनाओं के साथ संतुलन बनाए रखने की भी आवश्यकता पड़ सकती है।
किसी इंसान और पूरी कायनात दोनों के लिए सिर्फ और सिर्फ शांति ही एकमात्र धर्म है। शांतिपूर्ण माहौल के बीच अच्छे से अच्छे काम बन सकते हैं। वहीं, दूसरी ओर जब किसी समाज में अशांति का वातावरण होता है, तो उस स्थिति में कुछ भी सकारात्मक चीज़ें हासिल कर पाना असंभव है। भले ही वह व्यक्तिगत या किसी समुदाय स्तर का क्यों ना हो। यहां तक कि वह कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर का लक्ष्य भी हो सकता है।