खोज की शुरुआत ढूंढने से होती है। यदि आप सत्य की खोज में हैं, तो आप अपने लक्ष्य तक ज़रूर पहुंचेंगे। यह प्रकृति का नियम है और यह अपरिवर्त्तनीय है। उसके लिए यह असंभव है कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त न करे। इसमें कोई शक नहीं कि यह एक ईश्वरीय नियम है, जो यीशु मसीह द्वारा इस प्रकार व्यक्त किया गया था- “मांगो और तुमको मिलेगा, खोजो और तुम पाओगे, खटखटाओ और तुम्हारे लिए द्वार खोल दिया जाएगा।” (मत्ती, 7:7) इसके विपरीत खोज की भावना के बिना किसी के लिए भी खोज करना असंभव है।
खोजना क्या है? खोजने का अर्थ है अपने मन, अपनी आँखों, अपने कानों को सक्रिय करना। जब कोई व्यक्ति इन क्षमताओं को सक्रिय करता है, तो वह अपने आपमें संवेदनशील (sensitive) हो जाता है। वह ख़ुद को इस तरह ढाल लेता है कि जब भी उसे वह मिल जाए, जो वह चाहता है, तो वह तुरंत उसे पकड़ लेता है।
यदि कोई अंधा व्यक्ति प्यासा हो और उसके सामने पानी का ग्लास रखा जाए, तो वह उसमें से नहीं पिएगा। वह इसे ग्रहण करने में असमर्थ होगा। अनदेखी हक़ीक़तों के बारे में भी यही सच है। जिसके पास आध्यात्मिक खोज की प्यास नहीं है, वह आध्यात्मिक रूप से अंधा है- वह आध्यात्मिक चीज़ों को देखने में असमर्थ है, भले ही वे उसके चारों ओर मौजूद हों। इसलिए आध्यात्मिक खोज से पहले आध्यात्मिकता आती है। सबसे पहले आपको ख़ुद को एक आध्यात्मिक साधक बनाना होगा, तभी आप उन आध्यात्मिक चीज़ों की खोज कर पाएंगे, जो आपके आस-पास हमेशा प्रत्यक्ष रूप से मौजूद हैं।
खोज की भावना को ईमानदारी से रेखांकित किया जाना चाहिए। ईमानदारी क्या है? ईमानदारी धोखे, झूठ और पाखंड से मुक्ति है। खोजने वाले की सफलता के लिए यह एक शर्त्त है। यदि आप एक आध्यात्मिक खोजकर्त्ता के रूप में उभरने की इच्छा रखते हैं, तो आपको ईमानदारी के इस गुण को विकसित करना चाहिए। जो कोई भी ख़ुद को एक आध्यात्मिक व्यक्ति बनाना चाहता है, उसे सबसे पहले ख़ुद को एक ईमानदार व्यक्ति में बदलना होगा, क्योंकि ईमानदारी आध्यात्मिकता के लिए भुगतान की जाने वाली क़ीमत है। इस दुनिया में बिना क़ीमत चुकाए कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।
इंसान उस प्याज़ की तरह है, जिसकी कई परतें होती हैं। जैसे इन परतों को हटाकर ही प्याज़ के मूल तक पहुंचा जा सकता है, वैसे ही मनुष्य के व्यक्तित्व तक केवल उन कई परतों को हटाकर पहुंचा जा सकता है, जो समाज में रहते हुए उसे थोड़ा-थोड़ा करके घेर लेती हैं। यदि आप आध्यात्मिकता प्राप्त करने के इच्छुक हैं, तो आपके पास इन परतों से ख़ुद को अलग करके अपने मूल व्यक्तित्व को फिर से खोजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ऐसा करने के बाद ही आप ईमानदार बन पाएंगे और जहां ईमानदारी है, वहां आध्यात्मिकता है। ईमानदारी और आध्यात्मिकता साथ-साथ चलते हैं। ईमानदारी बीज की तरह है और आध्यात्मिकता इसका फल।
अध्यात्म सभी मनुष्यों में एक ऐसा गुण है, जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है। यह जीवन को इस तरह सार्थक बनाता है कि यह आपको एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। यह आपको असामान्य परिस्थितियों में भी मन की साधारण अवस्था (normalcy) के साथ जीने में सक्षम बनाता है। यह आपको अपना समय और ऊर्जा बेकार की गतिविधियों में बरबाद करने से बचाता है। इस प्रकार यह सुनिश्चित करता है कि आप समाज के एक स्वस्थ सदस्य बनें। अध्यात्म इतना क़ीमती है कि व्यक्ति को इसके लिए कोई भी क़ीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो। यह प्राप्ति के योग्य लक्ष्य है, लेकिन इसे केवल सच्चा प्रयास करने से ही प्राप्त किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने आप आध्यात्मिकता प्राप्त नहीं कर सकता।
प्रत्येक व्यक्ति दो बार जन्म लेता है। पहला जन्म शारीरिक होता है, जिसमें उसके माता-पिता निमित्त होते हैं। दूसरा उसका आध्यात्मिक जन्म है, जिसे व्यक्ति अपने प्रयासों से प्राप्त करता है।