By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda

यह कथन बहुत प्रसिद्ध है, परंतु यह एक अप्राकृतिक कथन है। वास्तविकता यह है कि इंसान की योग्यताएं बहुत सीमित हैं, इंसान अपनी सीमितताओं (Limitations) के कारण एक सीमा तक ही आगे जा सकता है, उसके बाद नहीं। कथित आदमी अपने लक्ष्य को न पाए, निश्चय ही वह शदीद (कठिन) प्रकार की निराशा में ग्रस्त हो जाए, यहां तक कि इसी निराशा की स्थिति में वह इस दुनिया से चला जाए।

इंसान के लिए सही निशाना “आसमान” नहीं है, बल्कि यह है कि वह अपनी प्राकृतिक सीमा को जाने और इसके अनुसार, अपने जीवन की योजना बनाए। ऐसी स्थिति में किसी इंसान के लिए सही निशाना यह है कि वह स्वयं अपने ऐतबार से अपना लक्ष्य निर्धारित करे, वह यह कहे; Stress is the limit..

अथार्त इंसान के लिए सही तरीका यह है कि वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास करे, जब उसको महसूस हो कि वह मानसिक तनाव (Stress) का शिकार हो रहा है, तो यह समझिए कि मेरी हद आ गई। इसके अमल की हद उसका शौक (अभिरूचि) या इसका साहस न हो, बल्कि ज़हनी सुकून (Peace of mind) हो।

इंसान की सफलता का राज़ यह है कि वह अपनी योग्यताओं को भरपूर रूप से इस्तेमाल कर सके। जब तक वह मानसिक तनाव से बचा हुआ है, उस समय तक इसको समझना चाहिए कि वह अपनी प्राकृतिक सीमा के अंदर है और जब वह यह देखे कि मैं मानसिक तनाव का शिकार हो रहा हूं, तो वह जान ले कि अब मेरी सीमा आ गई है। अब मुझे विराम करना चाहिए, न कि असफल रूप से आगे बढ़ना। इस दुनिया में आदमी जो कुछ पा सकता है, वह प्रकृति के दायरे के अंदर पा सकता है, इसके बाहर नहीं।

Category/Sub category

Share icon

Subscribe

CPS shares spiritual wisdom to connect people to their Creator to learn the art of life management and rationally find answers to questions pertaining to life and its purpose. Subscribe to our newsletters.

Stay informed - subscribe to our newsletter.
The subscriber's email address.

leafDaily Dose of Wisdom